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नीतीश फिर भाजपा के करीब !

मीडिया में आ रही ख़बरों के मुताबिक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन दिनों भाजपा के संपर्क में हैं। कहा जा रहा है कि भाजपा के एक बड़े नेता से उनकी बात हुई है और बहुत संभव है कि आने दिनों में जेडीयू और भाजपा फिर एक साथ दिखाई दें। दरअसल इस तरह की सुगबुगाहट तभी शुरू हो गई थी जब यूपी चुनाव को लेकर जेडीयू और आरजेडी ने अपनी राहें अलग कर लीं। पर पिछले दिनों नीतीश ने लालू और कांग्रेस के स्टैंड से एकदम उलट जिस तरह केन्द्र सरकार के नोटबंदी के फैसले की तारीफ की, उसके बाद इस चर्चा ने खासा जोर पकड़ लिया है।

टीवी रिपोर्ट्स के मुताबिक नीतीश ने भाजपा के एक बड़े नेता से बात की और नोटबंदी की तारीफ की। गौर करने की बात है कि यह ‘तारीफ’ उन तारीफों के अतिरिक्त है जो वे सार्वजनिक मंचों से कर रहे हैं। वैसे इन तारीफों के अलग मायने इसलिए भी लगाए जा रहे हैं क्योंकि हाल के दिनों में जेडीयू और आरजेडी के बीच तल्खियां आम हो चली हैं। उदाहरण के तौर पर नीतीश की निश्चय यात्रा का संदर्भ ही लें। आरजेडी के वरिष्ठ नेता और उपाध्यक्ष रघुवंश प्रसाद सिंह ने इस यात्रा को ‘बेकार’ करार दिया। उन्होंने यहाँ तक कहा कि यात्रा के दौरान केवल बातें की जा रही हैं, धरातल पर काम नहीं दिख रहा। यह केवल जेडीयू की यात्रा बनकर रह गई है।

नोटबंदी जैसे बड़े मुद्दे पर लालू-नीतीश की बिखरती जुगलबंदी और खुलकर सामने आई। एक ओर लालू प्रसाद यादव अपने एक के बाद एक आक्रामक ट्वीट और बयानों में इसे ‘फर्जिकल स्ट्राइक’ करार दे रहे हैं तो दूसरी ओर नीतीश इस फैसले को ‘साहसिक’ बताते हुए इसका स्वागत कर रहे हैं। उनके बेहद करीबी और हाल में राष्ट्रीय महासचिव बनाए गए हरिवंश भी नोटबंदी के पक्ष में लेख लिख रहे हैं। हाँ, पार्टी के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव जरूर इसके विरोध में खड़े दिख रहे हैं, पर जेडीयू की अंदरूनी राजनीति से वाकिफ लोग बखूबी जानते हैं कि पार्टी में उनका ‘स्थान’ और ‘सम्मान’ केवल सांकेतिक है।

अंदरखाने इस बात की भी चर्चा है कि लालू को राष्ट्रीय राजनीति में नीतीश की बढ़ती दिलचस्पी रास नहीं आ रही। चाहे यूपी चुनाव में गठबंधन की कवायद हो या शराबबंदी को देशव्यापी अभियान बनाने की कोशिश, लालू अच्छी तरह समझ रहे हैं कि नीतीश दिन-रात एक कर 2019 में खुद को मोदी के बरक्स लाने में जुटे हैं। नीतीश की इस तरह की कोशिशों को लालू के करीबी ‘वादाखिलाफी’ करार देते हैं। कारण यह कि जब महागठबंधन की नींव रखी जा रही थी, तब तथाकथित तौर पर तय यह हुआ था कि नीतीश बिहार संभालेंगे और लालू देश भर में घूम-घूमकर महागठबंधन की राजनीति को विस्तार देंगे।

बहरहाल, कारणों को न खंगालें तो भी इतना तो तय है कि महागठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा। नहीं तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और शिक्षा मंत्री अशोक चौधरी को न तो यह कहने की जरूरत पड़ती कि “महागठबंधन एकजुट है” और न यह दावा करने की कि “महागठबंधन में दरार पैदा करने की कोशिशें नाकाम साबित होंगी।”

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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