National Convention on Changing scenario on Hindi literature at BN Mandal University Madhepura.

समाज का दर्पण नहीं, धड़कन है साहित्य !

भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिन्दी के विभागाध्यक्ष डॉ.इन्द्र नारायण यादव की अध्यक्षता में दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया | जहां उद्घाटनकर्ता अंबेडकर विश्वविद्यालय के श्री नंदकिशोर नंदन, मुख्यवक्ता दिल्ली दूरदर्शन के निदेशक रह चुके वरिष्ठ साहित्यकार – कथाकार डॉ.गंगाधर मधुकर, झारखंड रांची से आये चन्द्रिका ठाकुर, संपादक डॉ.शिवनारायण, दूरदर्शन के पूर्व निदेशक डॉ.रमेश, कवि व आलोचक डॉ.वरुण कुमार तिवारी, वरीय कथाकार चन्द्र किशोर जायसवाल, डॉ.सुनील कुमार, डॉ.रेणु सिंह आदि ने दीप प्रज्वलित कर सेमिनार का उद्घाटन किया वहीं मंडल विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष रह चुके डॉ.विनय कुमार चौधरी एवं विभागीय प्राध्यापक डॉ.सिद्धेश्वर काश्यप को मंच संचालन व सहयोग करते देखे गये |

इस द्विदिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार में लगभग डेढ़ सौ डेलीगेट्स एवं शहर के साहित्यानुरागियों, कवि-लेखकों की अच्छी खासी उपस्थिति देखी गई | समारोह की सफलता तो तब मान ली गयी जब इतनी भीड़ के बावजूद चारों ओर मरघटी सन्नाटा विराजमान देखा गया और डॉ.मधेपुरी, डॉ.नरेश कुमार (सीनेटर) सरीखे विज्ञान के अनेक शिक्षकों को भी “हिन्दी कथा साहित्य के बदलते परिदृश्य” पर राष्ट्रीय स्तर के वरिष्ठ कथाकारों- डॉ.मधुकर गंगाधर, चन्द्रकिशोर जायसवाल, डॉ.शिवनारायण आदि द्वारा वाणी से वर्षा कर रहे सुधारस में घंटों नहाते देखा गया |

भला क्यों नहीं, जहां उद्घाटनकर्ता डॉ.नंदन ने समाज के लोगों की सोयी चेतना को जगाने हेतु विस्तार से उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि मानव जीवन के यथार्थ का चित्रण फाईव स्टार होटल में बैठकर कदापि नहीं हो सकता, वहीं मुख्यवक्ता के रुप में वरिष्ठ कथाशिल्पी डॉ.मधुकर ने बेवाकी से साहित्य सेवियों पर सतरंगे प्रहार करते हुए कहा कि हिन्दी साहित्याकाश में बिहारी साहित्यकारों की पहचान इसलिए नहीं बन पा रही है क्योंकि यहां साहित्य में खेमेबाजी, राजनीति और पालकी ढोने की प्रवृत्ति हावी हो गयी है | उन्होंने शोधार्थियों व छात्रों से कहा कि साहित्य को श्रेष्ठता प्रदान करने के लिए उसमें समाज के सच को संवेदनाओं के साथ उकेरना होगा क्योंकि साहित्य समाज का दर्पण नहीं बल्कि धड़कन होता है |

यह भी बता दें कि राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने वाले अनूप लाल मंडल की चर्चा के साथ दु:ख व्यक्त करते हुए ख्याति प्राप्त साहित्यकार चन्द्र किशोर जायसवाल ने बदलते साहित्यिक परिदृश्य पर विस्तार से चर्चा करते हुए जहां यह कहा कि आज के साहित्य से किसान गायब हो गये हैं वहीं सम्पादक डॉ.शिवनारायण ने कहा कि साहित्य अंततः और तत्वत: भाषा की साधना है जबकि आज की पीढ़ी में भाषा की साधना कहीं दिखाई नहीं देती !

इस अवसर पर कथा साहित्य के सिद्ध-प्रसिद्ध व सशक्त हस्ताक्षर डॉ.वरुण कुमार तिवारी, डॉ.सुनील कुमार, डॉ.रमेश एवं डॉ.रेणु सिंह आदि ने कथा साहित्य के बदलते परिदृश्य पर अपने-अपने विचार-उद्गार व्यक्त किये | इस मौके पर विश्वविद्यालय प्रोक्टर डॉ.बी.एन.विवेका, सिंडीकेट सदस्य डॉ.जवाहर पासवान, प्राचार्य अशोक कुमार, पूर्व प्राचार्य आर.के.पी.रमण व डॉ.वीणा कुमारी, प्राचार्य अशोक कुमार आलोक व डॉ.नूतन आलोक, डॉ.आलोक कुमार, डॉ.अरुण कुमार, महासचिव डॉ.अशोक कुमार, प्राचार्य डॉ.एच.एल.एस जौहरी और महासचिव मुस्टा डॉ.नरेश कुमार आदि प्रमुखरुप से उपस्थिति बनाये रखे | धन्यवाद ज्ञापन  डॉ.सिद्धेश्वर काश्यप ने किया |

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