बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ‘संघमुक्त भारत’ के अपने अभियान की औपचारिक घोषणा कर दी। राजगीर में जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद संभालने के बाद उन्होंने सभी विपक्षी दलों से मुद्दों के आधार पर एक मंच पर आने की अपील की। उन्होंने कहा कि वे गैर बीजेपी दलों के साथ आने को तैयार हैं। नीतीश कुमार का यह कदम 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले गैर बीजेपी दलों का साझा मंच बनाने की कोशिश का हिस्सा है और कहने की जरूरत नहीं कि वह यह मंच अपनी अगुआई में चाहते हैं। दो दिनों के इस अधिवेशन में पार्टी ने नीतीश कुमार को साझे मंच का पीएम उम्मीदवार भी माना, हालांकि इतनी ‘सावधानी’ जरूर बरती गई कि राजनीतिक प्रस्तावना में इस बात का जिक्र ना हो।
इस अधिवेशन में नीतीश ने सर्जिकल स्ट्राइक पर पहली बार मोदी सरकार की आलोचना की। उन्होंने कहा कि वे शुरू से इस मुद्दे पर सरकार के साथ हैं और रहेंगे लेकिन अब इस मुद्दे पर बीजेपी राजनीति करने लगी है। उन्होंने कहा कि नरेन्द्र मोदी देश के पीएम हैं, किसी एक दल के नेता मात्र नहीं और उनका व्यवहार उसी अनुरूप होना चाहिए। पाकिस्तान मुद्दे पर सरकार को और कड़ा रुख अपनाने की सलाह देते हुए नीतीश ने कहा कि मोदी सरकार को पाकिस्तान को ‘लव लेटर’ लिखना बंद कर देना चाहिए। तीन तलाक के मुद्दे पर भी उन्होंने सरकार पर निशाना साधा और कहा कि यह सब धार्मिक संगठनों के ऊपर छोड़ दिया जाना चाहिए। उन्होंने मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि विकास के मामले में पूरी तरह फेल होने के कारण वह ऐसे मुद्दे उठा रही है।
नीतीश कुमार ने अध्यक्ष पद संभालने के बाद घोषणा की कि अब वे सभी राज्यों का दौरा करेंगे। उन्होंने अपनी पार्टी के विस्तार और समान विचार वाले गैर बीजेपी दलों के साथ गठबंधन बनाने की बात भी कही। इसके अलावा उन्होंने सभी विपक्षी दलों से 16 नवंबर से होने वाले संसद सत्र के दौरान बड़े मुद्दों पर एक साथ मिलकर सरकार पर हमला बोलने का आग्रह किया।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि जेडीयू के राजगीर अधिवेशन से नीतीश और उनकी पार्टी की 2019 के चुनाव को ‘मोदी बनाम नीतीश’ का रूप देने की कोशिश और तेज हुई। इस अधिवेशन में विशिष्ट अतिथि के तौर पर पड़ोसी राज्य झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबुलाल मरांडी की उपस्थिति भी अकारण नहीं थी। बिहार चुनाव में जीत हासिल करने के बाद से ही नीतीश मिशन 2019 के तहत बिहार के बाहर पैर पसारने में दिन-रात एक कर रहे हैं। शरद यादव की जगह उनका अध्यक्ष बनना हो, यूपी चुनाव को लेकर चहलकदमी हो, शराबबंदी को राष्ट्रव्यापी अभियान बनाने की कोशिश हो या फिर राजगीर अधिवेशन से उठाये जाने वाले स्वर – ये सारी कवायद अपना कद बढ़ाने और प्रधानमंत्री पद पर दावेदारी जताने की खातिर है जिसे समझने के लिए आपका राजनीति का पंडित होना जरूरी नहीं।
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप