प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चुनाव आयोग के बाद देश में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराने के मुद्दे पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी सहमति जताई है। शिक्षक दिवस के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में एक छात्र के सवाल के जवाब में राष्ट्रपति ने कहा कि सभी पार्टियों को इस मुद्दे पर एक साथ आना चाहिए।
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस साल मार्च में भाजपा नेताओं की बैठक के दौरान यह विचार सबसे पहले सामने रखा था। उन्होंने कहा था कि बार-बार चुनाव होने से आचार संहिता लग जाती है, जिसके चलते विकास के काम रुक जाते हैं। इसलिए पंचायत, विधानसभा और संसद के चुनाव एक साथ होने चाहिएं जिससे कि समय और पैसा बचाया जा सके।
देश के प्रथम नागरिक ने आज इस विचार को आगे बढ़ाते हुए कहा कि लगातार चुनाव होते रहने और इस दौरान आचार संहिता लागू होने से सरकार का सामान्य कामकाज रुक जाता है। इस समस्या का समाधान करने के लिए राजनीतिक दलों को विचार करना होगा। लोग और राजनीतिक दल सामूहिक रूप से इस पर विचार करें तो हम आचार संहिता पर चर्चा करेंगे कि यह किस तरह की होनी चाहिए। इसमें चुनाव आयोग को भी शामिल किया जाना चाहिए।
इस संदर्भ में महामहिम ने आगे कहा कि संसदीय लोकतंत्र में अनिश्चितता रहती है। भारत में चार बार विभिन्न प्रधानमंत्रियों ने संसद को भंग करने की सिफारिश की और इसे स्वीकार किया गया। इस समस्या का समाधान करने को सभी को मिलकर विचार करना होगा।
बता दें कि चुनाव आयोग भी विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ कराने पर सहमति दे चुका है। आयोग ने कहा था कि वह दोनों चुनाव एक साथ कराने में सक्षम है। हालांकि राजनीतिक दलों का मानना है कि यह प्रस्ताव व्यावहारिक नहीं है। उनका तर्क है कि राज्यों मे अलग-अलग समय पर चुनाव होते हैं तो उन्हें एक साथ कैसे किया जा सकता है? साथ में यह भी कि बीच में सरकार गिरने पर क्या किया जाएगा?
जाहिर है कि प्रधानमंत्री, चुनाव आयोग और अब राष्ट्रपति ने जो प्रश्न उठाया है वो कतई साधारण नहीं। राष्ट्रहित में हमें इसके लिए तैयार होना ही चाहिए, छोटी-मोटी कठिनाईयों की परवाह किए बिना।
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप