प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू के बैनर तले भारतीय संस्कृति एवं मानवीय मूल्यों को उजागर करने वाले तथा अनेक आध्यात्मिक रहस्यों को प्रकाश में लानेवाले इस कृष्णाष्टमी के दिन पुण्यात्मा दादी प्रकाशमणि की 9वीं स्मृति-दिवस को राजयोग प्रशिक्षण केंद्र, मधेपुरा द्वारा समारोह पूर्वक राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी रंजू दीदी की अध्यक्षता में मनाया गया |
इस अवसर पर मुख्य अतिथि समाजसेवी डॉ.भूपेन्द्र मधेपुरी ने विशिष्ट अतिथियों- चैतन्य कुमार वर्मा, डॉ.गदाधर पांडेय. डॉ.अजय, अविनाश आशीष, डॉ.अभय कुमार, डॉ.एन.के.निराला, ओमप्रकाश सहित श्रेष्ठ व्यापारी दिनेश सर्राफ आदि की उपस्थिति में दीप प्रज्वलित कर दादी प्रकाशमणि की 9वी पुण्य-तिथि समारोह का उद्घाटन किया |
मौके पर श्रद्धा सिक्त भावनाओं के साथ श्रद्धालु नर-नारियों ने पुण्यात्मा दादी प्रकाशमणि के तैल-चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर नमन किया और उनके आदर्शों को जीवन में शामिल करने का दृढ़ संकल्प भी लिया |

यह भी बता दें कि इस उष्मीय संध्या में पसीने से भीगने के बावजूद भी आस्था एवं विश्वास से लबालब भरी आत्माएं सेवा केंद्र की संचालिका राजयोगिनी रंजू दीदी की निर्मल वाणी को ग्रहण करती रही | उन्होंने अपने संक्षिप्त संबोधन में कहा कि त्याग और तपस्या की मूरत बनी दादी प्रकाशमणि द्वारा प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय को संसार के पाचों महाद्वीपों में प्रकाशमय बनाकर पहुंचाने का काम किया गया | ऐसी अटूट, अटल एवं अथक सेवा के यू.एन.ओ. द्वारा उन्हें 1985 में ही शांतिदूत पदक से सम्मानित किया गया |
इस अवसर पर मुख्यअतिथि डॉ.मधेपुरी ने अपने संबोधन में कहा कि दादी प्रकाशमणि ममता, करुणा एवं मातृत्व शक्ति से इस कदर ओत-पोत रही कि हर श्रद्धालु नर-नारी द्वारा उन्हें स्मरण करते ही अपने अंदर नारी शक्ति की अनुभूति होने लगती है | डॉ.मधेपुरी ने कहा कि दुनिया में लोगों की चाहत क्या होती है ? प्रायः लोग यही चाहते हैं कि उन्हें शक्ति हो, विद्या हो और धन हो- जो आदिकाल से मातृशक्ति को ही उपलब्ध है | तभी तो दुर्गा-सरस्वती-लक्ष्मी की स्तुति…… या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रुपेण संसृता…… या फिर विद्या रूपेण संसृता…… अथवा लक्ष्मी रूपेण संसृता……. युग युग से चला आ रहा है | आपके सामने ताजा उदाहरण है- रियो ओलंपिक जहां भारत की दो बेटियों सिंधु एवं साक्षी ने हीं 125 करोड़ भारतवासियों की इज्जत बचाई जबकि हम सब मिलकर भी बेटियों की इज्जत नहीं बचा पाते हैं | आज बेटियों को बाजार से सब्जी भी लानी पड़ती है और ओलंपिक से मेडल भी | भारत की बेटी संतोष यादव को एवरेस्ट की चोटी पर भारतीय तिरंगा फहराने के लिए सारी शक्ति लगानी पड़ती है | कितनी विडंबना है कि तब भी समाज बेटियों को बोझ ही मानता आ रहा है |
अंत में सबों ने राधा-कृष्ण की जोड़ियों को मक्खन खिलाया और राजयोगिनी दीदी रंजू ने सबों को टीका लगाया | प्रसाद ग्रहण करने से पूर्व प्रजापिता को समर्पित किशोर ने सभी श्रद्धालुओं को धन्यवाद ज्ञापित किया |