Sindhu & Sakshi

सिंधू और साक्षी : देश की दो अनमोल बेटियां

आज ऑफिस से जल्दी आया था। करोड़ों भारतीयों की तरह मैं भी चाहता था कि ‘इतिहास’ को बनता हुआ देखूं। साक्षी के ब्रॉन्ज के बाद सिंधू का सिल्वर तो कल ही तय हो चुका था, पर आज उस सिल्वर का रंग ‘सुनहला’ होते देखना चाहता था। 21 साल की सिंधू ने दुनिया की नंबर एक खिलाड़ी स्पेन की मरीन के साथ खेला भी लगभग बराबरी पर। पर खेल तो खेल है। जीत किसी एक की ही होनी थी, सो मरीन जीत गई। सिंधु के सिल्वर का रंग ‘सुनहला’ होते-होते रह गया। पर क्या हुआ कि सोने का पदक नहीं मिला सिंधू को, उसने तो वो कर दिखाया कि सोने से भी उसे तौल दें तो कम होगा। इतिहास तो देश की ये दोनों बेटियां कल ही रच चुकी थीं। रक्षाबंधन पर इन दोनों ने पूरे देश को वो उपहार दिया जो अद्भुत, अभूतपूर्व, अविस्मरणीय है।

बहरहाल, सिंधू ने आज रियो में बैडमिंटन महिला सिंगल्स का सांस रोक देने वाला फाइनल खेला और शुरुआत में पिछड़ने के बावजूद पहला सेट 21-19 से अपने नाम कर लिया। दूसरे सेट में मरीन ने वापसी की और 12-21 से जीत दर्ज की। निर्णायक तीसरे सेट में एक-एक प्वाइंट के लिए दोनों खिलाड़ियों का संघर्ष देखने लायक था। एक समय तो 10-10 की बराबरी पर थीं दोनों, पर अंतत: मरीन का अनुभव काम आया और उसने 15-21 से फाइनल जीत लिया।

सिंधू हारीं जरूर लेकिन सिल्वर जीतकर वो ओलंपिक में ऐसा करने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बन गईं। यही नहीं, भारतीय ओलंपिक इतिहास में ये किसी भी खिलाड़ी द्वारा चौथा व्यक्तिगत सिल्वर मेडल है। इससे पहले ये सफलता राज्यवर्द्धन सिंह राठौर (ट्रैप शूटिंग), सुशील कुमार (कुश्ती) और विजय कुमार (शूटिंग) ने हासिल की है।

अब जरा कल के दिन अपने ‘पसीने’ से रियो ओलंपिक में भारत के मेडल का ‘सूखा’ खत्म करने वाली साक्षी मलिक की बात। इस 23 वर्षीया भारतीय महिला पहलवान ने रियो में महिला रेसलिंग के 58 किलोग्राम फ्री स्टाइल मुकाबले में किर्गिस्तान की एसुलू तिनिवेकोवा को 8-5 से हराकर ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया। साक्षी पहली भारतीय महिला पहलवान हैं जिन्होंने फ्री स्टाइस कुश्ती में ये कामयाबी हासिल की है। इसके अलावा वो भारतीय ओलंपिक इतिहास की चौथी महिला खिलाड़ी हैं जिन्होंने कांस्य हासिल किया है। उनसे पहले कर्णम मलेश्वरी, मैरी कॉम और साइना नेहवाल ही ये कमाल कर पाई हैं।

‘मधेपुरा अबतक’ अपनी और अपने तमाम पाठकों की ओर से देश की इन दोनों बेटियों को सलाम करता है। काश कि हम ‘स्पोर्ट्स कल्चर’ और हमारी सरकारें ‘स्पोर्ट्स इन्फ्रास्ट्रक्टर’ के प्रति जागरुक और ईमानदार रहें और गौरव के ऐसे क्षण बार-बार आएं!

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

 

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