“समरथ को नहिं दोष गोसाईं” – तुलसीदासजी की कही ये बात आज अगर सबसे ज्यादा लागू होती है तो हमारी न्यायपालिका पर। सामर्थ्यवान लोग आए दिन हमारी न्याय-व्यवस्था का मखौल उड़ाते हैं और हम मूकदर्शक बने रहते हैं। अब सलमान खान का चिंकारा मामला ही लीजिए। बॉलीवुड का ये सुपर स्टार आखिरकार चिंकारा मामले में भी बरी हो ही गया। राजस्थान हाईकोर्ट ने अपने फैसले से सलमान को बड़ी राहत दी है। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि चिंकारा के शिकार में बरामद गोलियां उनकी लाइसेंसी बंदूक से नहीं चलाई गई थी। शिकार के लिए जिस जीप का इस्तेमाल किया गया था उसके ड्राईवर के ‘लापता’ होने की वजह से भी अभियोजन के पक्ष को कमजोर माना गया।
बता दें कि सलमान खान के खिलाफ 26-27 सितम्बर को 1998 को भवाद गांव में दो चिंकारा और 28-29 सितम्बर 1998 में मथानिया (घोड़ा फॉर्म) में एक चिंकारा के शिकार के संबंध में वन्य जीव संरक्षण की धारा 51 के तहत मामले दर्ज किए गए थे। निचली अदालत (सीजेएम) ने उन्हें दोनों मामलों में दोषी ठहराते हुए 17 फरवरी 2006 को एक साल और 10 अप्रैल 2006 को पांच साल के कारावास की सजा सुनाई थी। सजा के खिलाफ सलमान खान ने हाईकोर्ट में अपील की थी। गौर करने की बात है कि जिस ‘संदेह’ के आधार पर निचली अदालत ने सलमान को सजा सुनाई थी, उसी ‘संदेह’ का लाभ हाईकोर्ट ने सलमान को देते हुए उन्हें मामले में बरी कर दिया।
हिरण के शिकार में इस्तेमाल की गई जिप्सी के ड्राईवर ने मजिस्ट्रेट के सामने सीआरपीसी की धारा 164 में अपना बयान भी दर्ज करवाया था। लेकिन, इसका क्रॉस एग्जामिनेशन नहीं होने पर अदालत ने उस बयान को खारिज कर दिया। पुलिस के छापे में सलमान खान के कमरे में पहले तो कोई हथियार नहीं मिला और बाद में बरामदगी में एयरगन को दिखाकर खुलेआम कानून के साथ आंखमिचौली खेली गई। हद तो तब हो गई जब बरामदगी में एक ऐसे चाकू को दिखाया गया जिससे हिरण का गला काटा जाना संभव ही नहीं था। ऊपर से सलमान खान के हथियार के लाइसेंस को एक्सपायर्ड बताते हुए उन पर मामूली आर्म्स एक्ट का मुकदमा किया गया।
चिंकारा मामले में फैसले के आते ही लोगों के बीच ये सवाल फिर से उठने लगा है कि क्या न्याय ऊंची रसूख और पहुंच वाले लोगों के लिए ही बना है? जबकि गरीबों को इसके लिए बार-बार पैर घसीटने होते हैं। अदालतों के चक्कर लगा-लगाकर उनकी जिंदगी बीत जाती है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस वी. एन. खरे ने खुद स्वीकार किया था कि हमारे देश में गरीबों के लिए न्याय के रास्ते करीब-करीब बंद हो चुके हैं। उन्होंने कहा था कि बिना पैसों के अदालत की ओर देखना भी गुनाह है।
सलमान खान के केस में जिस तरह से सबूतों के साथ छेड़छाड़ की गई और उन्हें तोड़ा-मरोड़ा गया वो पूर्व जस्टिस के बयान की पुष्टि करता है। इस मामले में जिस तरह न्याय का मजाक उड़ाया गया उस पर सोशल मीडिया में खुलकर सवाल उठाये जा रहे हैं। ऊंची पहुंच वाले लोगों के मामले में आज जिस प्रकार न्यायपालिका अपना काम कर रही है वो आम लोगों के मन में उसकी प्रतिष्ठा को तो कम करता ही है, निष्पक्ष न्याय को लेकर आशंका और अविश्वास को भी बल देता है। अगर समय रहते हम नहीं संभले तो इसके दूरगामी परिणाम निश्चित तौर पर बहुत घातक होंगे।
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप