दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल से ‘ठुल्ला’ शब्द का अर्थ समझाने को कहा। बता दें कि केजरीवाल ने एक टेलीविजन चैनल पर चर्चा के दौरान दिल्ली पुलिस के लिए ठुल्ला शब्द का इस्तेमाल किया था। पुलिसकर्मी अजय कुमार तनेजा को ये संबोधन नागवार गुजरा और उन्होंने ‘आप’ नेता पर मानहानि का आपराधिक मुकदमा दायर कर दिया, जिस पर सुनवाई करते हुए निचली अदालत ने केजरीवाल के लिए सम्मन जारी किया था।
सम्मन जारी करते हुए अदालत ने कहा था कि केजरीवाल का बयान प्रथमदृष्टया मानहानि का है और उन्हें 14 जुलाई को अदालत में पेश होने का निर्देश दिया था। केजरीवाल ने इसी संदर्भ में दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। आज इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए मुक्ता गुप्ता ने दिल्ली के मुख्यमंत्री को निचली अदालत में व्यक्तिगत रूप से पेशी से छूट तो दे दी लेकिन साथ में यह भी कहा कि केजरीवाल को ‘ठुल्ला’ शब्द का अर्थ समझाना चाहिए, क्योंकि हिन्दी शब्दकोष में इस शब्द का उल्लेख नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि “यदि आप (केजरीवाल) किसी के लिए यह शब्द (ठुल्ला) इस्तेमाल करते हैं तो आपको इसका मतलब पता होना चाहिए। आपको न्यायालय को इस शब्द का अर्थ समझाना चाहिए।” इस मामले पर अगली सुनवाई अब 21 अगस्त को होगी।
केजरीवाल की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील एन. हरिहरण ने कहा कि ‘ठुल्ला’ शब्द का इस्तेमाल सभी पुलिसकर्मियों के लिए नहीं, बल्कि गलत काम करने वाले पुलिसकर्मियों के लिए किया गया था। उन्होंने यह भी कहा कि इस शब्द का कोई मतलब नहीं है, इसलिए यह मानहानि से संबंधित नहीं है। लेकिन केजरीवाल के काबिल वकील ने यह बताने की जहमत नहीं उठाई कि जब इस शब्द का कोई मतलब ही नहीं है तो फिर इस ‘निरर्थक’ शब्द का संबंध गलत काम करने वाले पुलिसकर्मियों से जोड़ने का क्या मतलब है?
बहरहाल, जब ‘ठुल्ला’ शब्द पर बहस दिल्ली हाईकोर्ट तक पहुँच गई है तो क्यों ना इस शब्द की थोड़ी पड़ताल कर ली जाय। दरअसल ‘ठुल्ला’ एक तरह की कठबोली या स्लैंग (Slang) है। कठबोली किसी भाषा या बोली के उन अनौपचारिक शब्दों या वाक्यांशों को कहते हैं जो बोलने की भाषा या बोली में मानक तो नहीं माने जाते लेकिन बोलचाल में स्वीकार्य होते हैं। उदाहरण के लिए दिल्ली में पुलिसवालों को कठबोली में ‘ठुल्ला’ बोलते हैं और मुंबई में ‘मामा’। सिगरेट को ‘सुट्टा’ कहना, गाड़ी के मिस्त्री का गीयर के दाँत वाले पहियों को ‘गरारी’ कहना, बिना काम वाले को ‘निठल्ला’ कहना या फिर किसी के मरने पर कहना कि ‘टपक गया’ – कठबोली के ही उदाहरण हैं।
समाज या संगठन में ऊँचा दर्जा रखने वाले लोग खुली बातचीत में कठबोली का प्रयोग करने से कतराते हैं क्योंकि ये आमतौर पर संभ्रांत नहीं होती। लेकिन केजरीवाल तो केजरीवाल ठहरे। मुख्यमंत्री होकर जब वो धरने पर बैठ सकते हैं और पुलिसवालों को ‘ठुल्ला’ भी कह ही सकते हैं।
चलते-चलते:
इस क्रम में ये जानना दिलचस्प होगा कि पंजाब-हरियाणा के कुछ समुदायों में थानेदार या दारोगा के लिए ‘ठुल्ला’ शब्द का प्रयोग चार दशक पहले भी प्रचलित पाया गया था।
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप