Manjhi, Nitish & Lalu

नीतीश और मांझी को क्यों करीब ला रहे लालू..?

राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने कल अपने बड़े बेटे और स्वास्थ्य मंत्री तेजप्रताप के आवास पर इफ्तार पार्टी दी जिसमें भाजपा को छोड़ बिहार की तमाम पार्टियों के दिग्गज शामिल हुए। वैसे तो इस पार्टी में हाई प्रोफाइल लोगों की कोई कमी ना थी लेकिन सबकी निगाह लगी थी एकदम पास-पास बैठे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी पर। इसमें भी खास बात यह कि इन दोनों दिग्गजों को एक साथ बिठाकर इनके रिश्तों पर जमी बर्फ को हटाने का काम स्वयं लालू ने किया। जाहिर है कि यह हल्के में लेने की बात नहीं हो सकती।

बता दें कि नीतीश और मांझी की केवल कुर्सियां ही साथ-साथ नहीं थीं बल्कि दोनों बातचीत करते भी दिखे। यही नहीं इस मौके पर मांझी ने नीतीश की तारीफ भी कि और यहाँ तक कहा कि आज मैं जो कुछ भी हूँ वो उन्हीं की वजह से हूँ। हालांकि बाद में उन्होंने यह कहकर बचने की कोशिश की कि राजनीति अपनी जगह है और शिष्टाचार अपनी जगह। इसका कोई और मतलब ना निकाला जाए। नीतीश ने भी कहा कि ऐसे आयोजनों में लोग एक-दूसरे से मिलते रहते हैं और बातें भी होती हैं। बात-मुलाकात पर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए।

एक तरफ नीतीश और मांझी थोड़ा बच-बचाकर बोल रहे थे, जो स्वाभाविक भी था, तो उधर लालू अपने अंदाज मे बोल रहे थे कि जीतनराम मेरे पुराने सहयोगी और भाई हैं। हमलोग खुद इनकी इफ्तार पार्टी में गए थे और इन्हें आमंत्रित किया था। गौरतलब है कि मांझी ने रविवार को इफ्तार पार्टी दी थी जिसमें लालू अपने उपमुख्यमंत्री बेटे तेजस्वी के साथ पहुँचे थे। यहाँ याद दिला देना जरूरी है कि विधान सभा चुनाव के समय भी लालू मांझी को साथ लेना चाहते थे लेकिन नीतीश के ऐतराज के कारण ये सम्भव नहीं हो सका था।

कहने की जरूरत नहीं कि राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता। स्वयं लालू और नीतीश की दोस्ती इसका एक बड़ा उदाहरण है। आज अगर लालू मांझी और नीतीश को करीब ला रहे हैं तो ये अकारण हरगिज नहीं। फिलहाल इसके तीन कारण तो स्पष्ट दिख रहे हैं। पहला यह कि मांझी को महागठबंधन का हिस्सा बनाकर लालू भाजपाविरोधी राजनीति में अपनी ‘प्रासंगिकता’ बनाए चाहते हैं। दूसरा, इससे महादलितों के बीच उनकी पैठ बढ़ेगी और तीसरा कि नीतीश से रिश्ता बिगाड़े बिना वे महागठबंधन के भीतर की राजनीति में खुद को और मजबूत कर सकेंगे। बहरहाल, सुलझे-अनसुलझे रिश्तों का ये ताना-बाना आगे क्या शक्ल अख्तियार करता है, ये देखना सचमुच दिलचस्प होगा।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप    

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