बिहार इंटरमीडिएट परीक्षा के टॉपर्स रूबी राय (आर्ट्स) और सौरभ श्रेष्ठ (साइंस) की ख़बर अखबार, टीवी चैनल और तमाम सोशल साइट्स पर चर्चा का विषय बनी हुई है। हर कोई उनके ‘खोखले’ रिजल्ट की आलोचना कर रहा है और बिहार की शिक्षा-व्यवस्था कठघरे में है। ऐसी किसी घटना पर तत्काल अपनी राय देना और भड़ास निकाल लेना हमारी आदत बन चुकी है। होता ये है कि इधर भड़ास निकली नहीं कि उधर हम पूरे वाकये को भूल जाते हैं क्योंकि तब तक भड़ास निकालने को और कई ख़बरें हमारे सामने आ चुकी होती हैं। बहरहाल, यहाँ ये सब कहने का तात्पर्य ये है कि जब इन छात्रों को लेकर बहस छिड़ी ही है तो उसे सही अंजाम तक पहुँचाया जाय। और अंजाम तक हम तब पहुँचेंगे जब समस्या को जड़ से समझेंगे।
सच तो यह है कि जिस ‘रूबी’ और ‘सौरभ’ पर हम अपनी भड़ास निकाल रहे हैं वे स्वयं हमारी ‘अव्यव्स्था’ और हमारे नीति-निर्देशकों की ‘अदूरदर्शिता’ के शिकार हैं। चलिए हम कुछ आँकड़ों की मदद से इसे समझने की कोशिश करें। आपको ये जानकर हैरत होगी कि बिहार में एक लाख की आबादी पर मात्र सात कॉलेज हैं जबकि राष्ट्रीय औसत 27 कॉलेज का है। यही नहीं, बिहार में प्रति कॉलेज 2098 विद्यार्थियों का नामांकन होता है, जबकि राष्ट्रीय औसत 764 है। ऐसे में आप कैसी शिक्षा और कैसे परिणाम की उम्मीद कर सकते हैं भला..?
खैर, ये तो बात हुई पढ़ने वालों की। अब जरा पढ़ाने वालों की बात करें। यहाँ तो स्थिति और भी भयावह है। क्या आप यकीन करेंगे कि बिहार में कई ऐसे कॉलेज हैं जिनमें कई-कई विषयों में एक भी प्राध्यापक नहीं हैं लेकिन ना केवल ‘जादुई’ तरीके से परीक्षा फॉर्म भरने के लिए जरूरी छात्रों की 75 प्रतिशत उपस्थिति पूरी हो जाती है बल्कि वे छात्र ‘रूबी’ और ‘सौरभ’ की तरह जादुई अंक भी पा लेते हैं।
मजे की बात तो यह कि ये सब कुछ सरकार की नाक के नीचे हो रहा होता है और सरकार कभी गांव-गांव में शराब के ठेके खुलवाने में व्यस्त होती है तो कभी बंद कराने में। माना कि शराब जहर है और उसे बन्द करना चाहिए लेकिन इन छात्रों के जीवन में जो ‘विष’ घुल रहा है उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा..? महज खानापूरी करने वाले उपायों के बदले ठोस पहल कब होगी..? क्यों नहीं इस बात की कोशिश करें कि राज्य में छात्रों की संख्या और आज की जरूरत के मुताबिक कॉलेज हों, उनमें पढ़ाने वाले शिक्षक हों और सबसे अहम बात ये कि आधारभूत ढाँचा भी हो। अगर अब भी हम नहीं चेते तो बिहार से हर साल होने वाले लाखों छात्रों का पलायन रुकने की बजाय बढ़ता ही चला जाएगा।
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप