भारत सरकार ने यूजीसी के 2009 के पीएचडी रेगुलेशन में संशोधन कर दिया है। इस संशोधन से बिहार के 2009 से पहले के 40 हजार पीएचडीधारकों को लाभ होगा। रेगुलेशन के संशोधन से यह स्पष्ट हो गया है कि 11 जुलाई 2009 से पूर्व पीएचडी करने वालों को राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) और राज्य स्तरीय पात्रता परीक्षा (स्लेट) से छूट मिलेगी।
ये बताना जरूरी है कि यूजीसी ने इस संशोधन के माध्यम से राहत तो दी है लेकिन पाँच शर्तों के साथ। वे पाँच शर्तें हैं – 1. अभ्यर्थी को केवल नियमित पद्धति से पीएचडी उपाधि दी गई हो, 2. कम-से-कम दो बाह्य परीक्षकों ने शोधप्रबंध का मूल्यांकन किया हो, 3. पीएचडी शोधकार्य में से दो शोधपत्र प्रकाशित हों और कम-से-कम एक पत्र संदर्भित जर्नल में प्रकाशित हो, 4. पीएचडी शोधकार्य में से दो शोधपत्र संगोष्ठी या सम्मेलन में प्रस्तुत किए गए हों और 5. अभ्यर्थी का मौखिक साक्षात्कार लिया गया हो।
ध्यातव्य है कि बिहार में अभी बीपीएससी व्याख्याताओं की नियुक्ति कर रहा है। केन्द्र सरकार के संशोधन के मुताबिक अगर नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव हुआ तो हजारों पीएचडीधारक लाभान्वित होंगे। लेकिन इसके लिए बिहार के व्याख्याता नियुक्ति परिनियम 2014 में अविलंब संशोधन आवश्यक होगा। यहाँ एक प्रश्न ये भी उठता है कि जिन विषयों का साक्षात्कार बीपीएससी ने पूरा कर लिया है और सफल अभ्यर्थियों की नियुक्ति भी हो गई है उन विषयों के लिए सरकार क्या निर्णय लेगी..?
यूजीसी की भूल-सुधार में केन्द्र सरकार ने बेवजह बहुत वक्त लगा दिया। अब जो भी होना है वो बिहार सरकार की इच्छाशक्ति और तत्परता पर निर्भर करता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और शिक्षा मंत्री अशोक चौधरी उन अभ्यर्थियों के साथ अन्याय नहीं होने देंगे जो वर्षों से नियुक्ति की आस में थे..!
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप