2008 के इस कुसहा जल-प्रलय में ध्वस्त हुए हजारों-हजार घर, सड़कों के अनेक पुल एवं वह गई रेल की पटरियों में कुछ-कुछ सुधार व कार्य तो हुए हैं- फिर भी केंद्र सरकार द्वारा घोषित इस राष्ट्रीय आपदा में पुनर्वास के लिए हजारों लोग प्रखंड की ओर, कई गाँवों के लोग पुल के लिए प्रतिनिधियों की ओर तथा क्षेत्रीय जनता मधेपुरा से पूर्णिया रेल की सवारी करने के लिए केंद्र सरकार की ओर टकटकी लगाकर देख रही है|
जल-प्रलय के 8 वर्ष बीत गए | आज की तारीख में भी यदि आप किसी पार्क आदि सार्वजनिक स्थल पर जाएंगे तो आपको सुलझे सोच वाले व्यक्तियों से यही सुनने को मिलेगा –
यह कि जापान भी तो एक छोटा सा देश है जो क्षेत्रफल में अमूमन हमारे राजस्थान जैसा और जनसंख्या में लगभग यू.पी. जैसा माना जा सकता है | वहीं के हिरोशिमा एवं नागाशाकी को 6 एवं 9 अगस्त 1945 को अमेरिका द्वारा परमाणु बम से ध्वस्त ही नहीं बल्कि राख में तब्दील कर दिया गया | जब उसी राख पर एक महिला कुछ बच्चों को पढ़ाती हुई नजर आई तो दुनिया ने जापान एवं जापानियों के हौसलों को सलाम किया |
आखिर हमारे भारत को, भारतीय प्रदेशों को तथा विधायक, सांसद व जनप्रतिनिधियों को हो क्या गया है ? राष्ट्रवाद की भावना कहां खो गई है ? हमारे भारत में जापान की तरह सूरज की प्रथम किरण कब आएगी जो यहां के नर-नारियों व बच्चे-बूढ़ों को जगाती रहेगी |
सोचिए तो सही, राष्ट्रीय आपदा घोषित किए जाने के बावजूद आज भी 20% लोग पुनर्वास के लिए भटक रहे हैं |
मुरलीगंज प्रखंड के रघुनाथ-भेलाही स्थित बेंगा नदी का यह ध्वस्त पुल 8 साल बाद भी विधायक-सांसद द्वारा कोई पहल नहीं किए जाने पर आंसू बहा रहा है | और गांव के लोगों को प्रखंड मुख्यालय तक जाने के लिए आज तक कई किलोमीटर का चक्कर लगाना पड़ता है |
मधेपुरा के लोग तो 8 साल में रेल से मुरलीगंज ही पहुंच पाए हैं | पता नहीं कब तक पूर्णिया पहुंच पाएंगे | एक अकेला क्या करेगा ? पार होने के लिए कोटि करों में जबतक नहीं होगा पतवार !