एक तो जनसंख्या का दिशाहीन विस्फोट और दूसरा लोगों का गांवों से शहरों की ओर पलायन। ऊपर से प्रत्येक शहर में प्रतिदिन सौ से लेकर हजारों की संख्या में मोटर साईकिल एवं अन्य सवारियों का रोड पर आना। इसके अतिरिक्त बेरोजगारों को बहुत कुछ करने के लिए सड़क ही तो सहारा होता है।
फिर भी इतनी परेशानियों के बावजूद सरकारी दफ्तरों से अधिक अनुशासन सड़कों पर ही नज़र आता है। लेकिन इस सत्य को भी झुठलाया नहीं जा सकता कि हर शहर में सुबह या शाम – जाम ही जाम एक कहावत बनता जा रहा है।
तभी तो नीतीश सरकार द्वारा बिहार अर्बन रोड पॉलिसी-2016 में यह प्रावधान किया गया है कि राज्य के शहरों की सड़कें कम-से-कम दस मीटर और चौड़ी होंगी और न्यूनतम 30 कि.मी. प्रति घंटे की रफ्तार से गाड़ियां दौड़ेंगी।
इसके अतिरिक्त बिहार शहरी अभिकरण एवं इंडियन रोड कांग्रेस आदि के मद्देनज़र रोड पॉलिसी के मौजूदा प्रारूप के अनुसार चार श्रेणियों में बंटेंगी शहर की सड़कें – पहली श्रेणी – 50 से 60 मीटर चौड़ी होंगी सड़कें जिस पर 80 कि.मी. प्रति घंटे की रफ्तार से वाहन दौड़ेंगे, दूसरी श्रेणी – 30 से 40 मीटर चौड़ी होंगी सड़कें जिस पर 60 कि.मी. प्रति घंटे की रफ्तार से वाहन दौड़ेंगे, तीसरी श्रेणी – 20 से 30 मीटर चौड़ी होंगी सड़कें जिस पर 50 कि.मी. प्रति घंटे की रफ्तार से वाहन दौड़ेंगे और चौथी श्रेणी – 10 से 20 मीटर चौड़ी होंगी सड़कें जिस पर 30 कि.मी. प्रति घंटे की रफ्तार से वाहन दौड़ेंगे।
इसके अतिरिक्त वन वे के लिए भी नियम बनाए गए हैं। नियम चाहे जितने बना दिए जाएं परन्तु उनको सफल बनाना तो जनमानस पर ही निर्भर होता है। एक भारतीय जापान में होता है तो रद्दी कागज के एक टुकड़े को सड़क पर चलते रहने के बाद डस्टबिन में ही फेंकता है, परन्तु वही जब भारत की धरती पर उतरता है तो सब कुछ भूल कर सड़क को गन्दा करने में लग जाता है।