डॉ. भीमराव अंबेडकर, जिनका जीवन ही दलित अधिकारों के लिए संघर्ष का पर्याय है और जो विश्व के किसी भी मंच से सर्वोच्च सम्मान के अधिकारी हैं, संयुक्त राष्ट्र ने उनके ‘निर्वाण’ (निधन) के 60 वर्षों के बाद उनकी जयंती मनाने का फैसला किया है। इस वर्ष बाबा साहब की 125वीं जयंती है और इस तरह देर से ही सही लेकिन पहली बार उनकी जयंती मनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने बड़ा यादगार मौका चुना है।
बता दें कि संयुक्त राष्ट्र बाबा साहब की जयंती से एक दिन पहले 13 अप्रैल को अपने मुख्यालय में उनकी जयंती मनाएगा। इस अवसर पर “सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए असमानता से मुकाबला” विषय पर कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैय्यद अकबरुद्दीन ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी। कार्यक्रम का आयोजन संयुक्त राष्ट्र में भारत का स्थायी मिशन ‘सरोज फाउंडेशन’ और ‘फाउंडेशन फॉर ह्यूमन होराइजन’ के साथ मिलकर करेगा।
इस मौके पर भारतीय मिशन द्वारा जारी किए गए एक नोट में कहा गया कि भारत अपने ‘राष्ट्रीय प्रेरणास्रोत’ की 125वीं जयंती मना रहा है जो करोड़ों भारतीयों और दुनिया भर में समानता एवं सामाजिक न्याय के समर्थकों के लिए प्रेरणा बने हुए हैं। इसमें आगे कहा गया, “हालांकि यह एक संयोग है, हम गरीबी, भुखमरी और सामाजिक-आर्थिक असमानता के 2030 तक खात्मे के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाए गए सतत विकास लक्ष्यों में उपयुक्त रूप से बाबा साहब की उज्जवल दृष्टि के निशान देख सकते हैं।”
भारतीय संविधान के रचयिता बाबा साहब अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को हुआ था और 1956 में वे ‘निर्वाण’ को प्राप्त हुए थे। दलितों अधिकारों के इस सबसे बड़े ‘प्रवक्ता’ को 1990 में मरणोपरान्त ‘भारतरत्न’ से सम्मानित किया गया था।
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप