जाने माने गीतकार जावेद अख़्तर छह साल के कार्यकाल के बाद राज्यसभा से रिटायर हो गए। इस मौके पर अपने विदाई भाषण में उन्होंने जो कुछ कहा उसे पूरे देश को सुनना चाहिए। इस लाजवाब शायर ने अपने लाजवाब भाषण से वैसे तमाम लोगों को लाजवाब कर दिया जो खुद को ‘इस्लाम’ और ‘मुसलमान’ का हिमायती कहते हैं लेकिन वास्तव में वो इन शब्दों का अर्थ तक नहीं जान रहे होते। ऐसे चन्द लोगों के कारण पूरी कौम को अलग चश्मे से देखने और दिखाने की कोशिशें होने लगती हैं और इस कारण एक ओर ‘असदउद्दीन ओवैसी’ और ‘आजम खान’ तो दूसरी ओर ‘योगी आदित्यनाथ’ और ‘साक्षी महाराज’ जैसे नेता चर्चा में बने रहते हैं।
ऐसी कई बातें थीं जावेद अख़्तर के भाषण में जिन्हें बहुत गहराई से सुना और समझा जाना चाहिए। लेकिन जिस मुद्दे पर बोलकर उन्होंने अपनी तकरीर को मील का पत्थर बना दिया वो है भारत माता की जय बोलने और नहीं बोलने का मुद्दा जिसको लेकर पूरे देश में कोहराम मचा हुआ है। बता दें कि एमआईएम के नेता असदउद्दीन ओवैसी ने कहा था कि गर्दन पर छुरी रख दो लेकिन ‘भारत माता की जय’ नहीं बोलेंगे। इस पर कई तीखी प्रतिक्रियाएं हुईं। भाजपा के एक नेता ने तो ओवैसी की जुबान काटने वाले को एक करोड़ रुपये का इनाम देने की बात तक कह दी। लेकिन असल और निरुत्तरित कर देने वाला जवाब जावेद ने दिया।
जावेद अख़्तर ने कहा – “आए दिन ऐसी बातें सुनाई देती हैं जो ना सुनाई देतीं तो अच्छा था। एक साहब हैं जिन्हें ये ख़्याल हो गया है कि वो नेशनल लीडर हैं। हालाँकि, हकीकत ये है कि वो हिन्दुस्तान की एक स्टेट आन्ध्रा के एक शहर हैदराबाद के एक मुहल्ले के लीडर हैं। उन्होंने ये कहा है कि वो ‘भारत माता की जय’ नहीं कहना चाहते, नहीं कहेंगे। इसलिए कि संविधान उन्हें नहीं कहता है। संविधान तो उन्हें शेरवानी पहनने को भी नहीं कहता और टोपी लगाने को भी नहीं कहता। मैं ये जानने में इंटरेस्टेड नहीं हूँ कि ‘भारत माता की जय’ कहना मेरा कर्तव्य है कि नहीं। ये मैं जानना भी नहीं चाहता। इसलिए कि ये मेरा कर्तव्य नहीं, मेरा अधिकार है। और मैं कहता हूँ, ‘भारत माता की जय’, ‘भारत माता की जय’, ‘भारत माता की जय’। मैं इनकी बात को जितने सख़्त शब्दों में हो सके कंडेम (Condemn) करता हूँ और मैं इतने ही सख़्त लहजे में उस नारे को भी कंडेम (Condemn) करता हूँ, जो कहता है कि मुसलमान के दो स्थान – कब्रिस्तान या पाकिस्तान। मैं इसे भी कंडेम (Condemn) करता हूँ।“
आगे किसी का नाम लिए बगैर जावेद ने कहा कि “अक्लमन्द वो है जो तज़ुर्बों से सीखे, और उससे भी ज्यादा अक्लमन्द वो है जो दूसरों के तज़ुर्बों से सीखे। देख लीजिए, जिन समाजों में, जिन मुल्कों में धर्म का बड़ा बोलबाला है, जिन मुल्कों में ये यकीन है कि गुजरा हुआ जमाना बड़ा अच्छा था… जहाँ बात पर ज़ुबान कटती है, जहाँ आप एक लफ़्ज बोल दें जो धर्म के खिलाफ हो, मज़हब के खिलाफ हो तो फाँसी दे दी जाती है वो मुल्क हमारी मिसाल बनने चाहिए कि वो जहाँ हर तरह की आज़ादी है ?”
डेमोक्रेसी के लिए सेक्यूलरिज्म को अनिवार्य बताते हुए जावेद ने कहा कि “संविधान हमें डेमोक्रेसी देता है, लेकिन याद रखिए, डेमोक्रेसी, सेक्यूलरिज्म के बिना हो ही नहीं सकती।… हम यदि सेक्यूलरिज्म को बचाने की बात करें तो किसी एक वर्ग या दूसरे वर्ग पर अहसान नहीं कर रहे। हमको सेक्यूलरिज्म इसलिए बचाना होगा कि इसके बगैर डेमोक्रेसी बच ही नहीं सकती।“
जावेद अख़्तर की बेहद महत्वपूर्ण तकरीर के ये कुछ अंश हैं केवल पर ‘भारत माता की जय’ को लेकर उठे विवाद से जुड़े हर सवाल के जवाब के लिए काफी हैं। फिर भी अगर कुछ बच रहा हो तो पाकिस्तान के मशहूर इस्लामिक स्कॉलर और राजनेता ताहिर इल कादरी के इस बयान को सुनना चाहिए जिसमें उन्होंने कहा है कि वतन को माँ का दर्जा देना इस्लाम की तालीम और उसके इतिहास का हिस्सा हैं। उन्होंने बड़ा स्पष्ट कहा कि “वतन की सरजमीन को माँ का दर्जा देना, वतन की सरजमीन से मोहब्बत करना, वतन की सरजमीन से प्यार करना, वतन की सरजमीन के लिए जान भी दे देना, ये हरगिज इस्लाम के खिलाफ नहीं है। ये इस्लामी तालीम में शामिल है। जो वतन से प्यार की बात करता है उसे चाहिए कि कुरान को पढ़े। इस्लामी इतिहास को पढ़े।“
और साहब, जब आप कुरान और इस्लामी इतिहास ना पढ़ सकें और ना ही जावेद और ताहिर जैसों की सुन सकें तो कम-से-कम एपीजे अब्दुल कलाम जैसे शख़्स के जीवन में झाँक तो लें ही। जी हाँ, मिसाइलमैन, भारत के पूर्व राष्ट्रपति, भारतरत्न कलाम… रामेश्वरम में जिनकी मस्जिद की ‘नमाज’ तब तक पूरी ना होती थी जब तक वो वहाँ के शिव मंदिर की ‘परिक्रमा’ नहीं कर लेते थे।
क्या अब भी किसी ‘ओवैसी’ को ‘भारत माता की जय’ बोलने से एतराज होना चाहिए..?
मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप