Basant Panchmi

इन पाँच ‘खिड़कियों’ से देखें… तब दिखेगी पूरी बसंत पंचमी

बसंत पंचमी यानि माघ महीने की शुक्ल पंचमी यानि ऋतुओं के राजा बसंत के आगमन का उद्घोष। इसी दिन से बसंत ऋतु की शुरुआत होती है और प्रकृति नवयौवना-सी सजना-संवरना शुरू करती है। पेड़ों के पुराने पत्तों की जगह आप नई कोंपलों को देखते हैं और प्रकृति में जैसे नए जीवन का संचार हो उठता है। बसंत सच्चे अर्थों में प्रकृति का उत्सव है जिसका आगाज उसकी पंचमी से होता है। पर केवल इतनी ही नहीं है बसंत पंचमी। इस बसंत पंचमी को देखने की खातिर कई खिड़कियाँ हैं। चलिए उनमें से इन पाँच खिड़कियों को खोलें।

पहली खिड़की…

बसंत पंचमी से जुड़ी एक रोचक कथा है। भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना तो कर दी लेकिन वो स्वयं अपनी रचना से संतुष्ट नहीं थे। उन्हें अपनी ही रची सृष्टि मलिन और उदास लगती थी। हर तरफ बस मौन ही मौन छाया रहता था। उन्हें लगा कहीं कुछ कमी रह गई है। बहुत सोचने के बाद उन्होंने विष्णु से आज्ञा लेकर पृथ्वी पर अपने कमंडल से जल छिड़का। जलकण के पड़ते ही पृथ्वी में कम्पन होने लगा और वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति प्रकट हुई। वह एक चतुर्भुजी सुन्दर स्त्री थी जिसके एक हाथ में वीणा थी और दूसरा हाथ वर की मुद्रा में था। शेष दोनों हाथों में पुस्तक और माला थी। जी हाँ, वो शक्ति माँ सरस्वती थी। ब्रह्मा ने उनसे वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही माँ सरस्वती ने वीणा का मधुर नाद किया पूरी सृष्टि गुंजायमान हो गई। संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को ‘वाणी’ प्राप्त हो गई। तभी तो उन्हें वीणावादिनी और वाग्देवी जैसे नामों से पुकारते हैं। इस तरह बसंत पंचमी माँ सरस्वती का जन्मोत्सव भी है जिसे हम सरस्वती पूजा के रूप में मनाते हैं।

दूसरी खिड़की…

बसंत पंचमी हमें त्रेता युग और रामकथा से भी जोड़ती है। सीताहरण के बाद श्रीराम उन्हें खोजते हुए दक्षिण की ओर बढ़े और जिन स्थानों पर वो गए उनमें एक दंडकारण्य भी था। यहीं शबरी नाम की भीलनी रहती थी जिसने राम की भक्ति में विभोर होकर उन्हें अपने जूठे बेर खिलाए थे। वह स्थान वर्तमान गुजरात के डांग जिले में है जहाँ शबरी का आश्रम था। आपको बता दें कि श्रीराम बसंत पंचमी के दिन ही शबरी के यहाँ गए थे।

तीसरी खिड़की…

बसंत पंचमी का ऐतिहासिक महत्व भी कम नहीं। ये दिन हमें इतिहासप्रसिद्ध पृथ्वीराज चौहान की भी याद दिलाता है। पृथ्वीराज ने मोहम्मद गोरी को सोलह बार पराजित किया और हर बार उदारता दिखाते हुए उसे छोड़ दिया। पर जब सत्रहवीं बार वो स्वयं पराजित हुए तब गोरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ अफगानिस्तान ले गया और उनकी आँखें फोड़ दीं। इसके बाद की घटना जगतप्रसिद्ध है। मोहम्मद गोरी ने मृत्युदंड देने से पूर्व पृथ्वीराज के शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा और पृथ्वीराज ने इस बार कोई भूल नहीं की। अपने साथी चंदबरदाई की मदद से उन्होंने पहले अपने बाण को गोरी के सीने में पहुँचाया और इसके बाद पृथ्वीराज और चंदबरदाई ने एक-दूसरे के पेट में छुरा भोंक आत्मबलिदान दे दिया। 1192 में ये ऐतिहासिक घटना बसंत पंचमी के दिन ही हुई थी।

चौथी खिड़की…

बसंत पंचमी का एक सूत्र ‘कूका पंथ’ की स्थापना करने वाले गुरु रामसिंह कूका से भी जुड़ा है। 1816 ई. में उनका जन्म बसंत पंचमी के दिन ही हुआ था। गुरु रामसिंह ने उस युग में ना केवल नारी उद्धार, अन्तर्जातीय विवाह, सामूहिक विवाह, स्वदेशी और गोरक्षा के लिए आवाज बुलंद की थी बल्कि अंग्रेजों से लड़ते हुए अपनी शहादत भी दी थी।

पाँचवीं खिड़की…

बसंत पंचमी के ही दिन 1899 में सरस्वती के वरदपुत्र महाकवि निराला का जन्म भी हुआ था। अपनी रचनाओं से हिन्दी को उन्होंने जैसा गौरव दिया उसकी कोई सानी नहीं। इस ‘महाप्राण’ को जाने बिना तो ‘सरस्वती’ की पूजा भी पूरी ना होगी।

बसंत पंचमी को चाहे प्रकृति में देखें चाहे पुराणों में… त्रेतायुग में ढूंढ़ें या आधुनिक भारत में… इतिहास की नज़र से देखें या साहित्य में गोते लगाकर… अन्त में हम बस यही पाएंगे कि यौवन हमारे जीवन का बसंत है और बसंत इस ‘सृष्टि’ और हमारे ‘संस्कार’ का यौवन।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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