भ्रष्टाचार पर निगरानी रखने वाली संस्था ट्रांसपेरेंसी इन्टरनेशनल ने बुधवार को 2015 का वैश्विक भ्रष्टाचार सूचकांक (इन्टरनेशनल करप्शन परसेप्शन इंडेक्स) पेश किया जिसमें भारत 76वें स्थान पर है। 100 के ग्रेड स्केल में भारत का स्कोर 38 है। सर्वाधिक 91 स्कोर के साथ डेनमार्क इस सूची में लगातार दूसरे साल शीर्ष पर है। उत्तर कोरिया और सोमालिया न्यूनतम 8 स्कोर के साथ सबसे निचले पायदान पर हैं। बता दें कि बर्लिन स्थित ट्रांसपेरेंसी इन्टरनेशनल विश्वस्तर पर प्रतिष्ठित संस्था है जो विश्व बैंक आदि स्रोतों से प्राप्त डेटा के आधार पर भ्रष्टाचार सूचकांक तैयार करती है। इस सूचकांक से शून्य (अत्यधिक भ्रष्ट) से 100 (बहुत साफ-सुथरा) के स्केल पर विभिन्न देशों के सार्वजनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार के स्तर का पता चलता है।
ट्रांसपेरेंसी इन्टरनेशनल ने इस साल कुल 168 देशों की सूची जारी की है। 2014 में इस संस्था ने 174 देशों का मूल्यांकन किया था जिसमें भारत का 85वां स्थान था। कहने का अर्थ यह है कि भारत ने 2015 में अपनी रैंकिंग में 9 स्थान की छलांग लगाई है। यह ख़बर राहत तो देती है लेकिन आंशिक रूप से, क्योंकि भारत के स्कोर में कोई सुधार नहीं हुआ। भारत का स्कोर पिछले साल भी 38 ही था।
यह बता देना भी जरूरी है कि भारत उक्त सूचकांक में 76वें स्थान पर अकेला नहीं है। इस पायदान पर उसके साथ थाइलैंड, ब्राजील, ट्यूनीशिया, जांबिया और बुर्किनाफासो भी खड़े हैं। भारत के पड़ोसियों की बात करें तो भूटान 65 स्कोर के साथ 27वें स्थान पर है। चीन का स्कोर 37 है और वह 83वें स्थान पर है। पाकिस्तान और बांग्लादेश की हालत दयनीय है। पाकिस्तान जहाँ 30 स्कोर के साथ 117वें स्थान पर है वहीं बांग्लादेश 25 स्कोर के साथ 139वें स्थान पर।
ट्रांसपेरेंसी इन्टरनेशनल के इस सूचकांक के अनुसार डेनमार्क जैसे कुछ देश भ्रष्टाचार के मामले में भले ही बहुत हद तक साफ-सुथरे हों लेकिन दुनिया में एक भी देश ऐसा नहीं जिसे भ्रष्टाचार से मुक्त कहा जा सके। दुनिया के 68 प्रतिशत देशों में भ्रष्टाचार की समस्या अत्यन्त गंभीर रूप में व्याप्त है। ऐसे देशों में जी-20 समूह के आधे सदस्य देश भी शामिल हैं।
यह कहने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि समूचे विश्व में भ्रष्टाचार एकमात्र ऐसा मुद्दा है जिसे ‘सर्वव्यापी’ कहा जा सकता है। संसार का शायद ही कोई व्यक्ति हो जिसका सामना जीवन के किसी ना किसी मोड़ पर किसी ना किसी रूप में भ्रष्टाचार नाम की इस चीज से ना हुआ हो। जब ‘महामारी’ इस कदर फैल जाय तो जाहिर है कि उससे उबरने की कोशिश भी होगी। भ्रष्टाचार पर निगरानी रखने वाली इस संस्था ने इस ओर भी इशारा किया और कहा कि बदलाव की ‘जन आकांक्षा’ के कारण ही भारत और श्रीलंका जैसे देशों में नई सरकारें आईं।
अगर ट्रांसपेरेंसी इन्टरनेशनल की निगाह और टिप्पणी सरकारों के भ्रष्टाचाररोधी मंचों के जरिये सत्ता में आने पर है तो इस बात पर भी है कि भारत (और श्रीलंका) के नेताओं ने इस समस्या को लेकर लम्बे-चौड़े वादे तो किए लेकिन पूरा करने में नाकाम रहे। क्या हम ये उम्मीद करें कि हमारे हुक्मरान इस प्रतिष्ठित संस्था की ‘टिप्पणी’ को गम्भीरता से लेंगे और कुछ ऐसा जतन करेंगे कि अगले साल के सूचकांक में हम डेनमार्क जैसे देशों के करीब जाने के लिए कुछ और ऊपर का सफर तय कर लेंगे..?
मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप