Nitish Kumar

बिहार में महिलाओं को 35% आरक्षण और सरकारी नौकरी का गणित

पंचायत व नगर निकायों में 50 प्रतिशत आरक्षण देने के बाद शिक्षक बहाली में 50 प्रतिशत आरक्षण, फिर सिपाही बहाली में 35 प्रतिशत आरक्षण और अब अन्य सभी सेवाओं या संवर्गों में 35 प्रतिशत आरक्षण। बिहार सरकारी नौकरी में महिलाओं को इतने बड़े पैमाने पर आरक्षण देने वाला पहला राज्य बन गया है। बिहार सरकार के फैसले के मुताबिक सभी नौकरियों के सभी पदों पर सीधी भर्ती में महिलाओं को 35 प्रतिशत का आरक्षण दिया जाएगा। सरकार ने आरक्षित और गैर आरक्षित श्रेणी में भी महिलाओं को 35 प्रतिशत आरक्षण देने का निर्णय लिया है।

यह स्पष्ट कर देना उचित होगा कि बिहार की सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्ग की महिलाओं को 3 प्रतिशत आरक्षण पहले से ही मिल रहा है। सरकार की इस नई घोषणा के बाद भी वह यथावत रहेगा। अर्थात् अभी जिस 35 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की गई है वह आरक्षित एवं गैर आरक्षित कोटे की शेष 97 प्रतिशत नौकरियों पर लागू होगा।

बता दें कि बिहार में वर्तमान में अनुसूचित जाति के लिए 16 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति के लिए 1 प्रतिशत, अत्यन्त पिछड़ा वर्ग के लिए 18 प्रतिशत, पिछड़ा वर्ग के लिए 12 प्रतिशत और सामान्य वर्ग के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था है। महिलाओं को 35 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने के बाद यह गणित कुछ इस तरह होगा। अब अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 16 प्रतिशत में से महिलाओं के लिए 5.6 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 1 प्रतिशत में से .35 प्रतिशत, अत्यन्त पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित 18 प्रतिशत में से 6.3 प्रतिशत, पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित 12 प्रतिशत में से 4.2 प्रतिशत और सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित 50 प्रतिशत में से 17.5 प्रतिशत स्थान सुरक्षित रहेगा। कहने का अर्थ यह है कि महिलाओं को आरक्षण का लाभ जातिगत आधार पर ही मिलेगा। याद दिला दें कि केन्द्र में महिला आरक्षण बिल के लंबित होने का यह बड़ा कारण रहा है। कई विपक्षी दल जातिगत आधार पर ही महिलाओं को आरक्षण दिए जाने की मांग करते रहे हैं।

महिलाओं को 35 प्रतिशत आरक्षण देते हुए यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि महिलाओं के लिए आरक्षित स्थानों के लिए योग्य उम्मीदवार ना मिल पाने की स्थिति में रिक्त स्थानों को उसी भर्ती व्रर्ष में संबंधित वर्ग के पुरुष उम्मीदवारों से भरा जाएगा।

विधानसभा चुनाव के दौरान नीतीश कुमार ने जो सात वादे (निश्चय) किए थे उनमें महिलाओं को सरकारी नौकरियों में 35 प्रतिशत आरक्षण एक बड़ा वादा था। उनकी सरकार ने दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाते हुए उस वादे को पूरा भी कर दिया। लेकिन यह बात सरकार भी जानती है, हम भी जानते हैं और जिन महिलाओं को आरक्षण मिला है वो भी जानती हैं कि इस आरक्षण का वास्तविक लाभ तभी मिल पाएगा जब महिलाएं सही मायने में पुरुषों के साथ कदमताल कर रही होंगी। उदाहरण के तौर पर पंचायत या नगर निकायों को ही लें। होने को वहाँ महिलाएं 50 प्रतिशत हैं लेकिन हम ह्रदय पर हाथ रख कर क्या ये कह पाने की स्थिति में हैं कि उनकी भागीदारी व्यवहार में भी 50 प्रतिशत है..?

सच तो यह है कि ‘आरक्षण’ की शुरुआत घर से होनी चाहिए। बेटे और बेटी के लिए 50-50 प्रतिशत का आरक्षण। अधिकार में भी और कर्तव्य में भी। स्नेह में भी और सम्मान में भी। जिस दिन ऐसा होगा उस दिन किसी ‘महिला आरक्षण’ की जरूरत ही नहीं होगी। और हाँ, यही फार्मूला जातियों के आरक्षण पर भी लागू हो सकता है। अगर हम समाज को परिवार मानें और सभी जातियों को उसकी संतानें।

कोई भी आरक्षण ‘वंचितों’ को समानता का अवसर प्रदान करने के लिए होना चाहिए। आरक्षण अगर हमें अपनी कमजोरी से लड़ने की ताकत दे तो ठीक है। अगर वो कमजोरी को ही हथियार बनाना सिखाए तो वो सत्ता में आने और बने रहने की राजनीति के सिवाय कुछ भी नहीं।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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