Shiksha

‘बिहार’ की राजधानी ‘दिल्ली’ कहने वाले शिक्षकों का मूल्यांकन कैसे करेंगे पदाधिकारी..?

शिक्षा विभाग ने एक बड़ा फैसला लेते हुए प्राइमरी से प्लस टू तक के बच्चों एवं शिक्षकों के मूल्यांकन (एसेसमेंट) की घोषणा की है। मूल्यांकन का कार्य फरवरी 2016 से प्रारम्भ होगा। शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार को लेकर शिक्षा विभाग ने ये ‘भगीरथ’ संकल्प ले तो लिया है लेकिन मूल्यांकन की ‘गंगा’ आसानी से ‘धरती’ पर उतरने वाली नहीं हैं। जी हाँ, राह में कई मुश्किलें हैं और उनसे वाकिफ होने पर आप भी कुछ ऐसा ही सोचेंगे।

आगे बात करें उससे पहले मूल्यांकन की प्रक्रिया और उसके उद्देश्य को जानें। शिक्षा विभाग के निर्देश के अनुसार जिले से प्रखंड स्तरीय सभी शिक्षा पदाधिकारी एक-एक स्कूल का निरीक्षण करेंगे और किए गए एसेसमेंट के आधार पर जिले के सभी पदाधिकारी यानि डीईओ, डीपीओ, बीईओ आदि की रैंकिंग की जाएगी। रैंकिंग के आधार पर ही इन पदाधिकारियों को वेतन व अन्य सुविधाएं दी जाएंगी। कहने का मतलब ये कि शिक्षा विभाग ने बच्चों एवं शिक्षकों के मूल्यांकन के बहाने बड़ी सफाई से सभी अधिकारियों की नकेल भी कस दी है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि शिक्षा विभाग का ये कदम स्वागतयोग्य है लेकिन ये तमाम पदाधिकारी उन शिक्षकों के एसेसमेंट में क्या लिखेंगे जो वर्ष के बारहों महीने का नाम अंग्रेजी में नहीं बोल पाते या फिर भारत की राजधानी पटना और बिहार की राजधानी दिल्ली बोलते हैं। समस्या केवल शिक्षकों की ‘अशिक्षा’ की ही नहीं है। दूसरी बड़ी समस्या ये है कि सैकड़ों की तादाद में शिक्षक ‘कामचोरी’ भी करते हैं। जी हाँ, वैसे शिक्षकों की तादाद भी कम नहीं है जो ‘साधन-सम्पन्न’ और ‘दबंग’ हैं और उनकी हाजिरी बिना उनके आए बन जाया करती है। बिना सूचना के कई दिनों या कुछ हफ्तों के लिए ‘गायब’ हो जाना तो मामूली बात है।

‘मधेपुरा अबतक’ ने जब इस बाबत स्थानीय शिक्षाविदों से बात की तो ना केवल उनकी चिन्ता और आक्रोश से हम रू-ब-रू हुए बल्कि कई महत्वपूर्ण सुझाव भी सामने आए। इन बुद्धिजीवियों की राय है कि ‘कामचोर’ व बिना सूचना के गायब रहने वाले शिक्षकों पर अविलम्ब कार्रवाई होनी चाहिए। जो शिक्षक पढ़ने-पढ़ाने में दिलचस्पी नहीं लें और उन्हें नौकरी में बनाए रखने की कोई ‘विवशता’ हो सरकार की तो उन्हें अन्य सरकारी कार्यों – पोलियो अभियान, जनगणना, चुनाव आदि – में स्थायी तौर लगा दिया जाना भी एक विकल्प हो सकता है। दूसरी ओर अच्छे शिक्षकों एवं अच्छी रैंकिंग वाले पदाधिकारियों को पर्याप्त सम्मान व सुविधा मिले, सरकार को ये सुनिश्चित करना चाहिए।

सच तो ये है कि संकल्पित और समन्वित प्रयास से ही शिक्षा की गुणवत्ता वापस लौट सकती है। केवल सरकार को कोसने से काम नहीं होगा। इसके लिए पहले हमें जागना होगा। एक जागरुक समाज में ‘अशिक्षित’ और ‘कामचोर’ शिक्षक की जगह ना तो होनी चाहिए, ना हो सकती है। और हाँ, जब शिक्षक ‘कसौटी’ पर खरे उतरने लगेंगे तब बच्चों की ‘कसौटी भी स्वत: तैयार हो जाएगी। पर क्या इस कार्य के लिए बच्चों और शिक्षकों से पहले हमें खुद का मूल्यांकन नहीं करना चाहिए..?

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

सम्बंधित खबरें