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सुशील मोदीजी, बिहार में अगर अपराध बढ़े हैं तो जवाब सीएम देंगे या लालू..?

भाजपा समेत एनडीए के तमाम दल राज्य की कानून-व्यवस्था को मुद्दा बना बिहार की महागठबंधन सरकार को घेरने में लगे हैं। सरकार कहीं की और किसी भी पार्टी की हो, विपक्षी दल का काम ही है उसे घेरना। जरूरी हो तब भी, ना हो तब भी। इसमें कोई नई बात नहीं। जहाँ तक बिहार की कानून-व्यवस्था का प्रश्न है, उस पर सत्ता पक्ष और विपक्ष की राय अलग-अलग हो सकती है और है भी। अगर थोड़ी देर के लिए मान लें कि बिहार में आपराधिक घटनाएं बढ़ी हैं तो भी सवाल सरकार के मुखिया से होना चाहिए ना कि सरकार में शामिल दलविशेष के मुखिया से। लेकिन बिहार में ऐसा नहीं हो रहा।

बिहार के मुख्य विपक्षी दल भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी बिहार में ‘अपराधियों के कोहराम’ की बात करते हैं लेकिन सवाल पूछते हैं राजद के मुखिया लालू प्रसाद यादव से कि ‘ऐसा कब तक चलेगा’। मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अगर पहले की तरह राबड़ी होतीं या सरकार तेजस्वी के नेतृत्व में चल रही होती या फिर मुख्यमंत्री राजद से ही कोई होता तो सुमो का लालू से सवाल करना समझ में आता। तब ये भी मान लिया जाता कि सरकार ‘रिमोट’ से चल रही है और सुमो बीच में वक्त जाया ना कर सीधे ‘रिमोट’ से मुखातिब हैं। लेकिन यहाँ सामने नीतीश हैं। ना केवल चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ा गया बल्कि मुख्यमंत्री पद के वो घोषित उम्मीदवार थे। महागठबंधन के सरकार में आने के पीछे ये बहुत बड़ा, शायद सबसे बड़ा फैक्टर रहा है। मुख्यमंत्री के तौर पर नीतीश की क्षमता और सामर्थ्य भी संदेह से परे है। फिर सवाल उनसे ना कर लालू से क्यों..?

सुशील कुमार मोदी का कहना है कि लालू की नसीहत के बाद भी सरकार अपराधियों पर नकेल कसने में विफल रही है। उन्होंने कहा कि बैंक लूट, निर्माण कम्पनियों के अधिकारियों व कर्मियों को धमकाने और हत्या का सिलसिला अभी थमा भी नहीं कि अपराधियों ने पुलिस को निशाना बनाना शुरू कर दिया है। वैशाली में एएसआई अशोक कुमार यादव की हत्या राज्य सरकार के लिए गम्भीर चुनौती है। लगभग डेढ़ माह पहले वैशाली के ही लालगंज में एक दारोगा की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी। मोदी ने कहा कि ऐसी स्थिति में सरकार के बड़े घटक दल का नेता होने के नाते लालू को अपनी चुप्पी तोड़नी चाहिए और बताना चाहिए कि बिहार में अपराधियों का यह कोहराम कब तक चलता रहेगा।

इसमें कोई दो राय नहीं कि इस तरह की घटनाएं चिन्ता का विषय हैं। इनकी कड़ी निन्दा और भर्त्सना होनी चाहिए। लेकिन बात केवल यहीं तक नहीं रहती। राजनीति की ‘गुंजाइश’ ऐसे मौकों पर भी निकल जाती है या निकाल ली जाती है। अभी दो दिन बीते हैं जब एनडीए के घटक दल ‘हम’ के नेता मांझी ने कानून-व्यवस्था के ही मुद्दे पर नीतीश के ‘बेचारा’ होने की बात कही थी और ‘बदनामी’ मोल लेने के बजाए मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देने की सलाह दी थी। इस्तीफे की सलाह देकर मांझी जहाँ पहुँचे, लालू से सवाल कर मोदी भी वहीं पहुँच रहे हैं लेकिन अलग कोण से। स्पष्ट है कि नीतीश को लालू के बहाने घेरने की कोशिश की जा रही है। यही कोशिश चुनाव के दौरान भी की गई थी। परिणाम क्या रहा, ये सबके सामने है। कम-से-कम कानून-व्यवस्था और विकास के मुद्दे पर तमाम दलों के बीच सीधा संवाद हो तो बेहतर है। वैसे भी नीतीश के साथ काम करने का सुमो का लम्बा अनुभव है। बदली हुई परिस्थितियों में दोनों आज भले ही अलग-अलग हों, राज्य के हित में कुछ मुद्दों पर तो साथ होकर सकारात्मक भूमिका निभा ही सकते हैं।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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