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बिहार में बनी सरकार… तो मिल गया मोदी पर मुकदमे का अधिकार..?

बिहार में चुनाव खत्म हो चुके। महागठबंधन की सरकार भी बन चुकी। लेकिन विकास के नाम पर राजनीति अब भी जारी है। जुम्मा-जुम्मा आठ दिन बीते कि भाजपा को बिहार में ‘जंगलराज’ दिखने लगा और राजद विशेष पैकेज को मुद्दा बना प्रधानमंत्री को अदालत में घसीटने की तैयारी करने लगी। जी हाँ, राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवंश प्रसाद सिंह ने बिहार के लिए घोषित सवा लाख करोड़ के विशेष पैकेज को नहीं देने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अदालत में घसीटने की धमकी दी है।

पूर्व केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री ने कहा कि मोदी ने चुनाव के पहले ही बिहार को विशेष पैकेज देने की घोषणा की थी, जिसके मिलने की उम्मीद अभी तक नहीं दिख रही है। अब और इंतजार नहीं किया जा सकता। अब हिसाब होगा। ‘हिसाब’ करने के लिए राजद के इस दिग्गज नेता को ‘एकमात्र’ विकल्प अदालत का दिख रहा है और इसके लिए वो जल्द ही किसी अच्छे वकील से सलाह लेने वाले हैं।

प्रधानमंत्री पर बिहार की हकमारी और यहाँ की जनता के साथ धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए रघुवंश प्रसाद सिंह ने कहा कि उन्होंने बिहार को विशेष पैकेज देने का वादा करके उलटे कई केन्द्रीय योजनाओं की राशि में कटौती कर दी है। यह बिहार के साथ अन्याय है। खासकर प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना की राशि में कटौती कर नरेन्द्र मोदी सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के काम और विचारों की हत्या कर दी है।

रघुवंश प्रसाद सिंह ना केवल राजद बल्कि बिहार के चुनिंदा नेताओं में गिने जाते हैं। राज्य और केन्द्र में वो कई जिम्मेदार पदों पर रह चुके हैं। बिहार के लिए उनकी चिन्ता स्वाभाविक है और सराहनीय भी। लेकिन उनका ‘अधैर्य’ समझ के परे है। बिहार में महागठबंधन की सरकार बन जाने का ये अर्थ कतई नहीं कि उन्हें या उनकी पार्टी को कभी भी और किसी पर भी मुकदमे का अधिकार मिल गया। चुनाव से पहले नीतीश कुमार ने भी सात निश्चयों की घोषणा की थी। क्या सारे ‘निश्चय’ पूरे किए जा चुके..? बिहार ने नीतीश पर विश्वास किया है और वो उस विश्वास पर खरा उतरने की हर सम्भव कोशिश भी करेंगे लेकिन इसमें वक्त लगेगा। अगर नीतीश और उनकी राज्य सरकार को इसके लिए वक्त दिया जा सकता है तो केन्द्र की मोदी सरकार को क्यों नहीं..?

हर मुद्दे का राजनीतिकरण करने की प्रवृत्ति ठीक नहीं। लेकिन ये बीमारी महामारी की तरह फैल चुकी है। इतनी जल्दी ‘नाउम्मीद’ होने और ‘मुकदमा’ में समय और पैसा खर्च करने के बदले रघुवंश बाबू और उनकी पार्टी महागठबंधन के अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर प्रधानमंत्री और केन्द्र सरकार से बात करें तो शायद बिहार का अधिक भला हो। इस तरह के पैकेज की घोषणा चाहे केन्द्र की सरकार करे या राज्य की, उसे एक झटके में पूरा करना सम्भव नहीं। हमें समझना होगा कि कई तरह की प्रक्रियाओं से गुजरकर ही ऐसे वादों को अमलीजामा पहनाया जा सकता है। हमें थोड़ा ‘धैर्य’ और थोड़ा ‘विश्वास’ राजनीति से ऊपर उठकर रखना होगा। विकास के लिए ‘टकराव’ भी एक रास्ता हो सकता है लेकिन ‘सहयोग’ की हर सम्भावना खत्म होने के बाद।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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