Ill civic sense problem in India

सिवीक सेन्स कपूर की तरह उड़ता जा रहा है

प्रत्येक दिन सैकड़ाें नये वाहन यथा- साईकिल-रिक्शा, बाईक-टैम्पू, कार-जीप, बस-टªक एवं टैªक्टर आदि सड़क पर आ जाते हैं। और उसी र¶तार में हर रोज बेरोजगारों की फौज भी बढ़ती जा रही है। वही फौज किसी-न-किसी रूप में सड़क पर अपना दखल कायम कर लेती है। कुछ तो दुकान लगाकर या कुछ ठेला में लादकर फल-सब्जी, मा¡स-मछली, चाय-पान या बच्चों के खेलने का सामान बेचकर परिवार के भरण-पोषण में लग जाते हैं। फल यह होता है कि सड़क घटती चली जाती है और दुर्घटना बढ़ती चली जाती है। जब बुद्धिजीवियों का दबाव प्रशासन पर प्रेस के माध्यम से इस कदर पड़ने लगता है कि आये दिन प्रशासनिक पदाधिकारियों का दम घुटने लगता है।
तब कहीं आलाधिकारी के निर्देश पर एस.डी.एम., बी.डी.ओ., सी.ओ., डी.सी.एस.आर., थाना प्रभारी सहित पुलिस बल आदि सड़क पर उतरते हैं और सड़क अतिØमण मुक्त हो पाता है। यदाकदा टकराव की -िस्थति में बल प्रयोग भी करना पड़ता है और कभी-कभी वि-िभé संगठनों से वाÙाार् करने पर भी मजबूर होना पड़ता है। आजकल मधेपुरा एस.डी.एम. संजय कुमार निराला, अंचलाधिकारी उदय Ñष्णा यादव, थानाध्यक्ष मनीष कुमार एवं वार्ड पार्षद ध्यानी यादव के अलावा प्रशासन के कर्मचारीगण अतिØमण मुक्ति अभियान में लगे हैं।

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