Modi with Shinzo Abe

मोदी के ‘मैजिक’ से चीन हुआ हलकान, काशी में एक हुए भारत-जापान

काशी के दशाश्वमेघ घाट पर देव दीपावली की तरह हुई भव्य गंगा आरती में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे एक साथ शामिल हुए और इन दो देशों के रिश्तों के अनगिनत दीप नई रोशनी से जगमगा उठे। इन दीपों की ‘जगमग’ कुछ ऐसी थी कि चीन की आँखें ‘चुंधिया’ गईं। आबे की भारत-यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच हुए ऐतिहासिक समझौतों को चीन अपने खिलाफ ‘गोलबंदी’ बता रहा है। वहाँ के सरकारी अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने चेतावनी के लहजे में लिखा कि भारत जापान के साथ मिलकर चीन के खिलाफ कोई ‘गोलबंदी’ ना करे। आखिर भारत-जापान की करीबी से क्यों तिलमिला उठा है चीन..?

चीन की ‘चिन्ता’ पर चर्चा से पहले भारत और जापान के बीच हुए अहम समझौतों को जानना जरूरी है जिनमें बुलेट ट्रेन से लेकर परमाणु समझौता तक शामिल है। सबसे पहले बात करते हैं बुलेट ट्रेन समझौते की। भारत में बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट के लिए जापान 90 हजार करोड़ रुपए की फंडिग करेगा। जापान की मदद से 503 किलोमीटर लम्बे मुंबई-अहमदाबाद रूट पर बुलेट ट्रेन दौड़ेगी जिसकी रफ्तार 300 किमी प्रति घंटे होगी। दूसरा महत्वपूर्ण समझौता भारत में जापानी लोगों के लिए ‘वीजा ऑन अराइवल’ का है जो भारत 1 मार्च 2016 से शुरू करेगा। अब जापान से आनेवाले पर्यटक एवं अन्य लोग भारत आकर वीजा ले पाएंगे। तीसरा समझौता असैन्य परमाणु सहयोग और चौथा रक्षा उपकरण और टेक्नोलॉजी के आदान-प्रदान को लेकर है। यही नहीं, भारत और अमेरिका के संयुक्त युद्धाभ्यास में अब जापान स्थायी रूप से शामिल रहेगा।

वैसे तो ये सारे समझौते चीन को खटक रहे हैं लेकिन पाँचवां समझौता उसे कुछ ज्यादा ही अखरा है। ये समझौता पूर्वोत्तर में सड़क निर्माण को लेकर है जो कि सामरिक दृष्टि से बहुत अहम है। इस समझौते के तहत जापान भारत के साथ मिलकर पूर्वोत्तर में चीन से सटी सीमा पर सड़क का निर्माण करेगा। इससे इस इलाके में भारत की ताकत बढ़ जाएगी।

भारत और जापान के बीच दोस्ती की इस नई और बड़ी कहानी की ईबारत पिछले साल लिखी गई थी जब प्रधानमंत्री मोदी जापान गए थे। चीन पाकिस्तान के साथ मिलकर लम्बे अरसे से भारत को घेरने की कोशिश करता रहा है। अब भारत ने जापान के साथ व्यापारिक, सामरिक और कूटनीतिक रिश्तों का नया अध्याय लिखकर चीन को सीधे जवाब देने की तैयारी कर ली है।

भारत, चीन और जापान के बीच रिश्तों के तानेबाने को समझने के लिए हमें इतिहास में भी झाँकना होगा। 1962 के युद्ध में चीन ने हमारी पीठ में छुरा घोंपा था और दूसरे विश्वयुद्ध में जापान ने चीन को रौंदा था। इतिहास की इस गाँठ को भूल पाना इन तीनों ही देशों के लिए संभव नहीं। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने कूटनीतिक तौर पर चीन के साथ भी आहार-व्यवहार में कोई कमी नहीं रखी है। लेकिन साथ ही बड़ी सूझबूझ से “तू डाल-डाल, मैं पात-पात” की नीति पर भी अमल किया है।

अंत में एक बात और। शिंजो आबे ने प्रधानमंत्री मोदी को ‘बुलेट’ की रफ्तार से काम करनेवाला बताया है। उनके इस कथन में ये जोड़ना जरूरी है कि ‘कूटनीति’ के ईंधन से इस ‘बुलेट’ की रफ्तार और तेज हो गई है। साथ में मजे की बात ये कि मोदी कम-से-कम इस मामले में कोई ‘शोर’ नहीं मचाते और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग हों या जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे, ‘जैकेट’ सबको पहनाते हैं।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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