बिहार चुनाव के पाँच चरणों में सर्वाधिक ‘महत्वपूर्ण’ (और कदाचित् निर्णायक भी) तीसरा चरण कल सम्पन्न हुआ। मतदान का प्रतिशत 53.32 रहा जिससे कोई स्पष्ट संकेत या रुझान नहीं मिलता और इस तरह 8 नवंबर का ‘रहस्य’ और गहरा गया है। बहरहाल, इस चरण के ‘महत्व’ पर बात करने से पहले कुछ तथ्यों पर निगाह डाल लें।
तीसरे चरण में छह जिलों की 50 सीटों के लिए वोट डाले गए। इन छह जिलों में राजधानी पटना भी शामिल है। पटना के अलावे शेष पाँच जिले भोजपुर, बक्सर, नालंदा, सारण और वैशाली हैं। 2010 के चुनाव में इन छह जिलों में मतदान का प्रतिशत 50.08 था। पिछले दो चरणों की तरह इस चरण में भी बाजी महिला मतदाताओं के नाम रही। 52.05 प्रतिशत पुरुषों के मुकाबले लगभग 54 प्रतिशत महिलाओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। इन छह जिलों में 53.62 प्रतिशत मतदान के साथ बक्सर सबसे आगे रहा, जबकि 51.82 प्रतिशत मतदान के साथ पटना सबसे पीछे।
तीसरे चरण में उम्मीदवारों की कुल संख्या 808 थी जिनमें 737 पुरुष और 71 महिला उम्मीदवार शामिल हैं। मतदाताओं की कुल संख्या एक करोड़ 45 लाख 18 हजार सात सौ पाँच और मतदान केन्द्रों की संख्या 13,648 थी। जिन 50 सीटों पर कल मतदान हुआ उनमें से 2010 में 23 सीटें जेडीयू, 19 सीटें भाजपा और 8 सीटें राजद ने जीती थीं। इस बार महागठबंधन की ओर से राजद 25, जेडीयू 18 और कांग्रेस सात सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जबकि एनडीए की तरफ से भाजपा के 34, लोजपा के 10, हम के चार और रोसोसपा के दो उम्मीदवार मैदान में हैं।
अब बात इस पर करें कि ये चरण महत्वपूर्ण और बहुत हद तक ‘निर्णायक’ भी क्यों है। इसके कई कारण स्पष्ट तौर पर दिखते हैं। राजनीतिक विश्लेषकों व समीक्षकों की मानें तो पहले दो चरणों में एनडीए का प्रदर्शन उम्मीद के अनुरूप नहीं रहा है। अगर इस चरण में भी मतदान उसके पक्ष में नहीं हुआ तो आगे के दो चरणों में उसकी राह और कठिन हो जाएगी। खास कर पाँचवें चरण में जिसमें सीमांचल का इलाका है और मुस्लिम मतदाता बड़ी संख्या में हैं। कहने की जरूरत नहीं कि मुस्लिम मतदाताओं का स्पष्ट झुकाव महागठबंधन की ओर है।
इस चरण के महत्वपूर्ण होने का दूसरा बड़ा कारण लालू के दोनों ‘लाल’ का चुनाव मैदान में होना है। तेजप्रताप महुआ से और तेजस्वी राघोपुर से भाग्य आजमा रहे हैं। तेजप्रताप का मुकाबला हम के रवीन्द्र राय से है तो तेजस्वी के सामने पिछले चुनाव में उनकी माँ राबड़ी को हराने वाले सतीश कुमार हैं। सतीश तब जेडीयू के उम्मीदवार थे और इस बार भाजपा की ओर से चुनाव लड़ रहे हैं। ये दोनों सीटें ना केवल लालू बल्कि उनकी पार्टी के लिए भी प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई है।
भाजपा के दिग्गज नेता और विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष नंदकिशोर यादव (पटना साहिब), विधान सभा उपाध्यक्ष अमरेन्द्र प्रताप सिंह (आरा), विधान सभा में भाजपा के मुख्य सचेतक अरुण कुमार सिन्हा (कुम्हरार), भाजपा के वरिष्ठ नेता सीपी ठाकुर के सुपुत्र विवेक ठाकुर (ब्रह्मपुर) और नीतीश कुमार के मुखर समर्थक से मुखर विरोधी बने ज्ञानेन्द्र सिंह ज्ञानू (बाढ़) के भाग्य का फैसला भी इसी चरण में होना है। जेडीयू के मंत्रियों श्याम रजक (फुलवारीशरीफ) और श्रवण कुमार (नालंदा) और जेल में बंद पूर्व जदयू विधायक और इस बार निर्दलीय प्रत्याशी बाहुबली अनंत सिंह (मोकामा) का चुनाव भी इसी चरण में है।
तीसरे चरण की राजनीतिक अहमियत इस कारण भी है कि नालंदा नीतीश कुमार का गृहक्षेत्र है, सारण लालू प्रसाद यादव का और हाजीपुर रामविलास पासवान का। इस तरह इन तीनों कद्दावर नेताओं का कद भी अन्य चरणों की तुलना में इस चरण में कहीं ना कहीं दांव पर अधिक लगा हुआ है।
कल सम्पन्न हुए तीसरे चरण के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि बिहार की जनता सारे दलों को ‘भरमा’ कर रखने में पूरी तरह सफल रही है। पहले जनता नहीं जान पाती थी कि चुनाव के बाद नेता क्या करेंगे और आज कोई भी नेता यह कहने की स्थिति में नहीं है कि जनता क्या करने जा रही है। यह अपने आप में एक बड़ा परिवर्तन है। इस चरण के मतदान में 2010 की तुलना में तीन प्रतिशत का इजाफा जरूर हुआ है और इस इजाफे पर महागठबंधन और एनडीए दोनों अपनी-अपनी मुहर भी लगा रहे हैं पर सच यही है कि ‘जश्न’ मनाने की स्थिति में कोई खेमा नहीं है।
मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप