बिहार चुनाव की ताजा ख़बर। प्रधानमंत्री मोदी ‘ब्रह्मपिशाच’ तो थे ही अब ‘गली के गुंडे’ भी हो गए हैं और इस उपाधि से उन्हें नवाजा ‘शैतान’ लालू की ‘बेचारी’ बेटी मीसा ने जिसे बकौल मोदी उसके पिता पिछले चुनाव में ‘सेट’ नहीं कर पाए थे। कैसा लगा पढ़कर..? हंसी आई, क्रोध हुआ, शर्मिंदगी महसूस की आपने या फिर गालियां निकलीं आपके श्रीमुख से..? चाहे जैसा लगा हो आपको, यही ‘सच’ और यही ‘हासिल’ है बिहार चुनाव का। सिर्फ बिहार को ही बदनाम क्यों करें, कमोबेश हर राज्य का और इस तरह पूरे देश का यही हाल है। ‘अपशब्दों’ के लिए ‘प्राथमिकियां’ दर्ज होना और चुनाव आयोग का ‘संज्ञान’ लेना अब आम बात हो चली है।
लालू ‘चाराचोर’, नीतीश ‘अहंकारी’, अमित शाह ‘मोटे’ और नरेन्द्र मोदी ‘जुमलेबाज’ तो थे ही लेकिन ज्यों-ज्यों चुनाव आगे बढ़ा लालू ‘शैतान’, नीतीश ‘खराब डीएनए वाले’, अमित शाह ‘नरभक्षी’ और नरेन्द्र मोदी ‘ब्रह्मपिशाच’ हो गए। हाय री राजनीति..! गिरावट की भी कोई हद होती है कि नहीं..? राजनीति में आलोचना की जगह है, व्यंग्य की जगह है, कटाक्ष की जगह है लेकिन क्या अब इन शब्दों के लिए भी जगह बनानी होगी..? स्वस्थ लोकतंत्र में विरोध तो होना ही चाहिए, थोड़ी-बहुत तल्खियां भी बर्दाश्त की जा सकती हैं लेकिन क्या इन अपशब्दों की वकालत किसी तरह भी की जा सकती है..?
यहाँ चार नेताओं को मिली ‘उपाधियों’ की ही चर्चा की गई है। इनमें दो महागठबंधन के तो शेष दो एनडीए के सबसे बड़े चेहरे हैं। इसका ये मतलब कतई नहीं कि बाकी बचे ‘बेदाग’ हैं। सच तो यह है कि हमाम में सब नंगे हैं और इस कदर नंगे हैं कि उनका बस चले तो एक-दूसरे की चमड़ियां उतारकर ओढ़ लेने से भी परहेज ना करें। बहरहाल, बिहार चुनाव में ऐसे शब्दों और उपाधियों का पूरा ‘कोश’ तैयार हो रहा है और इसमें नई इंट्री हुई है ‘गली के गुंडे’ की जिसका प्रयोग किसी और के लिए नहीं प्रधानमंत्री मोदी के लिए किया गया है और वो भी लालू की बड़ी बेटी मीसा के द्वारा।
पूरा वाक्या कुछ यों है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी एक चुनावी रैली में कह दिया कि लालू प्रसाद ने पिछली बार ‘बेचारी’ बेटी को ‘सेट’ करने की कोशिश की थी और अब अपने बेटों को ‘सेट’ करने की कोशिश में पूरे बिहार को ‘अपसेट’ कर रहे हैं। इस पर मीसा ने अपने फेसबुक पेज पर पूछा कि यह ‘सेट’ करने की कोशिश क्या है..? क्या एक बाप अपनी बेटी को ‘सेट’ करने की कोशिश करता है..? मीसा ने लिखा कि किस तरह की बाजारू भाषा है ये..? वह भी एक महिला के लिए..? देश का प्रधानमंत्री होकर एक सार्वजनिक मंच से एक महिला को ‘बेचारी’ कहने पर मीसा ने सख्त आपत्ति की और कहा कि एक तरफ आप ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ’ का नारा देकर स्वांग रचते हैं और दूसरी तरफ महिलाओं के लिए सरेआम अशोभनीय भाषा का इस्तेमाल करते हैं। और इस तरह मोदी को ‘गली का गुंडा’ करार देते हुए मीसा कहती हैं कि जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल प्रधानमंत्री अपने भाषणों में करते हैं वैसा कोई सभ्य व्यक्ति नहीं कर सकता।
खैर ये तो मोदी के घोर समर्थक भी मानेंगे कि चुनावी रैलियों में उनकी भाषा और शैली वो नहीं रहती जो ‘लालकिले’ या ‘सिलिकॉन वैली’ में रहती है। मीसा के लिए कहे गए शब्द भी प्रधानमंत्री की गरिमा के अनुरूप नहीं थे। दुनिया भर में उन्होंने अपनी जो छवि बनाई उसे वो बिहार में दांव पर क्यों लगा रहे हैं, ये भी समझ से परे है। पर मीसा अपने पिता द्वारा प्रधानमंत्री को ‘ब्रह्मपिशाच’ कहे जाने पर क्या बोलेंगी..? और जब उनके पिता ‘करिया कबूतर’ और ‘एक बोतल दारू’ से ‘मोदी के भूत’ को ‘झाड़’ रहे होते हैं और ‘भूत’ फिर भी ना भागे तो ‘करिया हड़िया’ में ‘सरसों’ और ‘लाल मिर्च’ जला रहे होते हैं, तब वो चुप क्यों रहती हैं..?
बिहार में चुनाव अपने चरम पर है। दो चरण हो चुके हैं और तीसरे चरण का मतदान आज हो रहा है। चौथा और पाँचवां चरण भी आ ही जाएगा… 8 नवंबर को मतगणना होगी… और फिर अगले कुछ दिनों में चाहे जिसकी भी हो, सरकार का गठन भी हो जाएगा। जीतने वाले सीना तानकर चलेंगे और हारने वाले गरदन झुकाकर। चुनाव है तो जीत-हार भी होनी ही है, सो हो जाएगी। लेकिन क्या सारी कहानी इसी जीत-हार पर आकर खत्म हो जाती है..? नहीं… बिल्कुल नहीं। सच तो ये है कि चुनाव चाहे जो जीते, ‘मनुष्यता’ की लड़ाई दोनों ही पक्ष – महागठबंधन और एनडीए (शेष दल भी अपवाद नहीं हैं) – हार चुके हैं। मनुष्यता की लड़ाई मर्यादा और संस्कार के ‘शस्त्रों’ से लड़ी जाती है पर बिहार चुनाव में सभी दलों के नेता इन शस्त्रों का ‘संधान’ भूल चुके हैं। वे सचमुच भूल बैठे हैं कि मर्यादा खोकर, संस्कार लुटाकर आपने ‘सिंहासन’ क्या पूरा संसार भी पा लिया तो भी ‘कंगाल’ ही कहलाएंगे।
मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप