राजनीति में और वो भी आज की राजनीति में पाला बदलना कोई आश्चर्य की बात नहीं। ‘मौसम’ और ‘अवसर’ के हिसाब से प्रतिबद्धता ‘बदल लेना’ और यहाँ तक कि ‘बदलते ही रहना’ भी किसी को अब चौंकाता नहीं। लेकिन पाँच में से दो चरणों के चुनाव के बाद अगर आपको ये ‘ज्ञान’ मिले कि कल तक आप जिनके साथ खड़े थे उनके कारण सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता ‘खतरे’ में थी और जिन्हें आप कोसते नहीं थक रहे थे दरअसल वही सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता नाम की दोनों ‘चिड़िया’ को तथाकथित ‘खतरे’ से बाहर निकाल सकते हैं, तो इसे क्या कहेंगे आप..? जाहिर तौर पर राजनीतिक अवसरवादिता की ये पराकाष्ठा है और पूर्व केन्द्रीय मंत्री तथा वर्तमान में समरस समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नागमणि बिहार में सम्भवत: इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं। लालू प्रसाद यादव से ‘मौसम वैज्ञानिक’ का खिताब पा चुके रामविलास पासवान से भी बड़े। अब तक कोई ऐसी पार्टी नहीं है जिसमें नागमणि जाकर ना हो आए हों।
नागमणि ने कल 24 अक्टूबर को प्रेस कांफ्रेंस कर बिहार चुनाव के अगले तीन चरणों में जदयू-राजद-कांग्रेस के महागठबंधन को समर्थन देने की घोषणा की। उन्होंने ‘संकेत’ में कुछ कहने की जगह सीधे तौर पर आरोप लगाया कि सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव और जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) के संरक्षक पप्पू यादव भाजपा के ‘एजेंट’ हैं। उन्होंने कहा कि दोनों दल भाजपा के पक्ष में चुनाव प्रचार कर रहे हैं। दोनों दलों ने ज्यादातर टिकट यादव और मुसलमानों को दिया है ताकि उनके मतों का बिखराव हो और भाजपा को इसका लाभ मिले। बकौल नागमणि भाजपा के कारण बिहार में सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता खतरे में पड़ गई है, ऐसे में उन्होंने महागठबंधन का साथ देने का निर्णय लिया है।
नागमणि ने यह भी कहा कि पिछड़ा, अतिपिछड़ा, दलित एवं अल्पसंख्यकों के हक-हुकूक के लिए नीतीश कुमार और लालू प्रसाद की जोड़ी ने शहीद जगदेव की नीति और सिद्धांतों पर चलने का वादा किया है। लेकिन नागमणि ये नहीं कह पाए कि ये ‘वादा’ वो नीतीश-लालू से चुनाव शुरू होने के पूर्व क्यों नहीं ले पाए। खैर, जो ‘डील’ तब नहीं हुई, वो अब हो गई। वैसे बता दें कि नागमणि शहीद जगदेव के पुत्र हैं और अब तक के राजनीतिक करियर में उन्होंने जो भी हासिल किया है वो इसी कारण। 2005 में नीतीश कुमार की पहली सरकार में इनकी पत्नी मंत्री भी रह चुकी हैं।
गौरतलब है कि नागमणि से पहले एनसीपी के महासचिव तारिक अनवर ने तीसरे मोर्चे से अलग होने की घोषणा की थी। तारिक अनवर तीसरे मोर्चे की ओर से मुख्यमंत्री पद का चेहरा थे लेकिन मुलायम ने बिहार आकर भाजपा के पक्ष में लहर होने की बात कह दी और ऐसे में तारिक के लिए मोर्चे से अलग होने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था।
पहले तारिक अनवर (एनसीपी) और अब नागमणि (समरस समाज पार्टी) के अलग होने के बाद जो चार पार्टियां तीसरे मोर्चे में रह गई हैं, वो हैं मुलायम की समाजवादी पार्टी, पप्पू यादव की जनअधिकार पार्टी, देवेन्द्र यादव की समाजवादी जनता पार्टी और पीए संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी। इसमें कोई दो राय नहीं कि मुलायम की अगुआई वाले इस तीसरे मोर्चे में शामिल पार्टियों की ‘तैयारी’ और ‘तालमेल’ की बात अब हास्यास्पद हो चली है।
मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप