हंसकर शूली को चूमने वाला भगत सिंह शहीद-ए-आज़म कहलाया- डॉ.मधेपुरी

मधेपुरा में आज शहीद-ए-आज़म भगत सिंह की 117वीं जयंती समाजसेवी-साहित्यकार डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी ने अपने ‘वृंदावन’ निवास पर बच्चों के बीच मनाई। डॉ.मधेपुरी ने ज्ञानदीप निकेतन के बच्चों से कहा कि ब्रिटिश भारत में पंजाब प्रांत के लायलपुर जिले के बंगा गांव में वर्ष 1907 के 28 सितंबर के दिन पिता सरदार किशन सिंह के घर क्रांतिवीर बालक भगत सिंह का जन्म हुआ था। किशोरवय के भगत सिंह जलियांवाला बाग कांड में जनरल डायर की क्रूरता की जानकारी पाते ही देशवासियों के अपमान का बदला लेने को मचलने लगे। भगत सिंह ने “हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी” नामक क्रांतिकारी दल का गठन किया, जिससे चंद्रशेखर आजाद, सुखदेव, राजगुरु सरीखे अन्य बहुत से क्रांतिवीर जुड़ते चले गए।

डॉ.मधेपुरी ने कहा कि साइमन कमीशन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान हुए लाठी चार्ज में लाला लाजपत राय के सिर पर लाठी लगी। जिसके बाद 17 नवंबर, 1928 को उनका देहांत हो गया। भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव आदि ने लिया था इस हत्या का बदला अंग्रेज अफसर सांडर्स की हत्या करके। और मिली तीनों को फांसी की सजा तब जबकि ये तीनों क्रांतिकारी असेंबली में बम फेंक कर भागे नहीं, बल्कि खड़े रहे।

अंत में डॉ.मधेपुरी ने बच्चों सहित उनके प्राचार्य चिरामणि यादव से यही कहा की शहादत से एक दिन पहले कैदी साथियों के नाम लिखे पत्र में भगत सिंह ने हंसते हुए यही लिखा था- ‘उनके मन में देश व मानवता के लिए जितना करने की लालसा थी, वे उसका हजारवाँ हिस्सा भी नहीं कर पाए हैं………..जिंदा रहते तो शायद यह हसरत पूरी कर पाते।’

प्राचार्य चिरामणि यादव ने संक्षेप में उद्गार व्यक्त करते हुए बच्चों से कहा कि भगत सिंह यही कहा करते कि देश की आजादी के लिए बलिदान देने वालों की संख्या इतनी बढ़ जाएगी कि साम्राज्यवादी शक्तियों के लिए मिलकर भी इंकलाब को रोकना संभव नहीं होगा। अंत में प्राचार्य सहित सभी बच्चों ने बारी-बारी से शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के तैल चित्र पर पुष्पांजलि की।

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