Dr.BhupendraNarayan Yadav Madhepuri inaugurating Farog-E-Urdu at Madhepura Kala Bhawan.

हिन्दी और उर्दू दोनों सगी बहनें हैं- डॉ.मधेपुरी

मंत्रिमंडल सचिवालय विभाग, बिहार सरकार के उर्दू निदेशालय के अंतर्गत उर्दू भाषी विद्यार्थी प्रोत्साहन राज्य योजना एवं जिला प्रशासन मधेपुरा के संयुक्त तत्वावधान में कला भवन में आयोजित फरोग-ए-उर्दू कार्यक्रम का उद्घाटन वरिष्ठ समाजसेवी-साहित्यकार प्रो.(डॉ.)भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी, जिला अल्पसंख्यक कल्याण पदाधिकारी सह प्रभारी पदाधिकारी उर्दू कोषांग श्री चंदन कुमार, सहायक बंदोबस्त पदाधिकारी मोहम्मद सफी अख्तर, सीडीपीओ (कुमारखंड) रजा खान, अनुमंडल अवर निर्वाचन पदाधिकारी मोहम्मद अशरफ अफरोज, मुफ्ति मिन्नतुल्ला रहमानी, मोहम्मद शाहनवाज समी, मोहम्मद मुर्तजा अली, अनवारूल हक, मोहम्मद इजहार आलम, समाजसेवी शौकत अली आदि ने दीप प्रज्जवलित कर सम्मिलित रूप से किया।

फरोग-ए-उर्दू कार्यक्रम में जिले के सभी प्रखंडों के मैट्रिक/इंटर व ग्रेजुएशन समकक्ष वर्ग समूह के 150 छात्र-छात्राओं ने अपनी प्रतिभा प्रदर्शित किया। तीनों ग्रुपों के लिए क्रमश: विषय रखा गया था- 1.तालीम की अहमियत 2.उर्दू जुबान की अहमियत एवं 3.उर्दू गजल की लोकप्रियता। इस अवसर पर पांच जज के रूप में सफी अख्तर, रजा खान, अशरफ अफरोज, मुफ्ति मिन्नतुल्ला रहमानी एवं मोहम्मद शाहनवाज समीम करते देखते गए। समाजसेवी शौकत अली कार्यक्रम को समय से समाप्त करने में लगे रहे। विगत वर्षों में यह कार्यक्रम दिन भर चलता था किंतु इस वर्ष इसे 3 घंटे में समाप्त करना पड़ा। फलस्वरूप प्रतिभागियों को और पूर्व प्राचार्य डॉ.सुरेश भूषण आदि को भी अपने विचार व्यक्त करने का भरपूर समय नहीं मिल पाया।

समयाभाव के चलते वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.भूपेन्द्र मधेपुरी ने बच्चों को संबोधित करते हुए संक्षेप में यही कहा- ब्रिटिश-भारत के रजिस्ट्री ऑफिस में सारे दस्तावेज उर्दू में लिखे जाते थे। हिंदी साहित्य के कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद भी आरंभ में गबन और बाजार-ए-हुस्न उर्दू में ही लिखे थे। बाद में वे लीजेन्ड बने “हिंदी” राइटिंग में। उन्होंने यह भी कहा कि प्रायः लोग यही मानते हैं कि मुसलमानों की जुबान है उर्दू। लेकिन ऐसा नहीं है। वास्तव में हिंदुस्तान की जुबान है उर्दू। उर्दू को जोड़ने की जुबान बनाएं। इसे विस्तार दें। विस्तार ही तो जीवन है। संकुचन तो मृत्यु है बच्चों !

डॉ.मधेपुरी ने कहा कि संस्कृत तो भारत की प्राचीन भाषा है। जिसे आर्य भाषा या देव भाषा भी कही जाती है। हिंदी उसी आर्य भाषा संस्कृत की उत्तराधिकारिणी मानी जाती है। हिंदी का विकास 1000 वर्ष पूर्व से माना जाता है। हिंदी का जन्म संस्कृत, पालि, प्राकृत सरीखेे ठहराव से गुजरते हुए अपभ्रंश व अवभट्ट पर ठहर जाता है। चंद्रदेव शर्मा गुलेरी ने इसी अवभट्ट को ‘पुरानी हिंदी’ नाम दिया है। इसी हिंदी, अरबी और फारसी के मेल से जो भाषा बनी है उसे ही तो उर्दू कहते हैं। कुछ भाषाविद् तो हिंदी और उर्दू को एक ही भाषा मानते हैं। हिंदी और उर्दू वास्तव में दोनों सगी बहनें हैं। लोग हिंदी को मां तो उर्दू को मौसी कहते हैं। समारोह की नजाकत को देखते हुए डॉ.मधेपुरी ने अपनी चार पंक्तियां सुुुनाकर बातें समाप्त की-

होली-ईद मनाओ मिलकर, कभी रंग को भंग करो मत।

भारत की सुंदरतम छवि को, मधेपुरी बदरंग करो मत।।

अंत में उर्दू ट्रांसलेटर मो.इजहारआलम ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

सम्बंधित खबरें