26 जनवरी को दिनभर 74 वें गणतंत्र दिवस और सरस्वती पूजनोत्सव का धूम मचा रहा। बच्चों के प्रभातफेरी से लेकर सरस्वती पूजनोत्सव एवं शाम में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का सिलसिला देर शाम तक चलता रहा। इस बीच हिंदी कविता के छायावादी युग के चार स्तंभों में एक सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, जिनका जन्म 1899 ईस्वी. के सरस्वती पूजनोत्सव के दिन हुआ था, को कौशिकी क्षेत्र हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा याद किया गया।
यह कार्यक्रम कौशिकी के अध्यक्ष पूर्व प्रति कुलपति डॉ.केके मंडल के निवास पर संपन्न हुआ। उनके चित्र पर पुष्पांजलि के बाद अध्यक्ष डॉ.मंडल ने कहा कि निराला जी एक सुप्रसिद्ध छायावादी कवि के साथ-साथ निबंध, उपन्यास व कहानियों के रचनाकार थे। निराला जी की मातृभाषा बंगाली थी। 20 वर्ष की आयु में उन्होंने पत्नी मनोहरी देवी द्वारा प्रेरित होकर हिंदी सीखी। दो वर्ष बाद उनकी पत्नी भी उन्हें अलविदा कह दी। एक बेटी थी वह भी विधवा बन गई और जल्द ही मौत को गले लगा ली। निराला का जीवन अब सर्वाधिक नीरस हो गया और उन्होंने लेखन को ही अपना परिवार बना लिया।
कौशिकी के सचिव डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी ने कहा कि निराला जी ताजिंदगी सामाजिक न्याय एवं शोषण के विरुद्ध लेखन कार्य में लगे रहे। उनकी भिक्षुक कविता आज भी हर जुबान पर घूमती है- मुट्ठी भर दाने को….. भूख मिटाने को……।
मौके पर साहित्यकार प्रोफेसर मणिभूषण वर्मा, गजलकार सियाराम यादव मयंक, राकेश कुमार द्विजराज, हास्य कवि डॉ.अरुण कुमार आदि ने भी उन्हें शब्दों की पुष्पांजलि अर्पित करते हुए नमन किया।
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