लगता है दिल्ली भेजे गए लाखों डीएनए सैंपल नीतीश के काम नहीं आ रहे। बिहार की जनता नीतीश के ‘स्वाभिमान’ के मुकाबले ‘छीनी गई थाली’ को लेकर प्रधामनंत्री मोदी की ‘शिकायत’ को ज्यादा तरजीह दे रही है शायद। इतनी ज्यादा कि अब थाली के बदले मोदी को पूरा बिहार मिलने जा रहा है। जी हाँ, ताजा सर्वे की मानें तो बिहार में एनडीए की सरकार बन रही है और वो भी दो तिहाई बहुमत से। जी न्यूज ने बीते 29 और 30 सितंबर को बिहार की सभी 243 सीटों पर ‘जनता का मूड’ जानने के लिए सर्वे किया। सर्वे का नाम भी ‘जनता का मूड’ ही था। इस सर्वे के अनुसार भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को स्पष्ट रूप से 147 सीटें मिलती दिख रही हैं, जबकि जदयू, राजद और कांग्रेस का महागठबंधन मात्र 64 सीटों पर सिमट रहा है। शेष 32 सीटों पर कांटे का मुकाबला है। इन सीटों पर पलड़ा किसी ओर झुक सकता है। बता दें कि इससे पहले जी न्यूज का सर्वे 18 सितंबर को आया था जिसमें एनडीए को 140 सीटें दिखाई गई थीं और महागठबंधन को 70 सीटें दी गई थीं।
12 अक्टूबर को 10 जिलों की 49 सीटों पर होने जा रहे पहले चरण के चुनाव की बात करें तो एनडीए को 53.8 प्रतिशत, महागठबंधन को 40.2 प्रतिशत और अन्य को 6 प्रतिशत वोट मिलने का अनुमान है। सर्वे में एक दिलचस्प अनुमान नक्सल प्रभावित क्षेत्रों को लेकर है। एनडीए को सबसे अधिक फायदा इन्हीं क्षेत्रों में होने जा रहा है। खास तौर से आरा से सीतामढ़ी तक पड़ने वाले इलाके में एनडीए को 54.6 प्रतिशत, जबकि महागठबंधन को 39.7 प्रतिशत वोट मिलने की सम्भावना बताई गई है।
सितम्बर के आखिरी हफ्ते में ही ‘लोकनीति सीएसडीएस’ ने भी सर्वे किया। सीएसडीएस सर्वे भी एनडीए की स्पष्ट बढ़त बता रहा है। इस सर्वे के मुताबिक एनडीए 42 प्रतिशत वोट हासिल करता दिख रहा है। नीतीश-लालू-कांग्रेस के महागठबंधन को 38 प्रतिशत वोट मिलने के आसार हैं और वो एनडीए से 4 प्रतिशत पीछे है। 4 प्रतिशत का ये अन्तर सीटों के बड़े अन्तर का कारण बन सकता है। हालांकि सर्वे के मुताबिक नीतीश कुमार अभी भी बिहार के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता हैं और ग्रामीण इलाकों में महागठबंधन को अधिक वोट भी मिल रहे हैं लेकिन कुल मिलाकर बाजी एनडीए मार ले जा रहा है।
अब तक हुए सारे सर्वे पर गौर करें तो हम पाएंगे कि पहले बढ़त महागठबंधन को हासिल थी। बिहार में लोगों की आम राय थी कि केन्द्र के लिए मोदी और बिहार के लिए नीतीश ठीक हैं। लेकिन चुनाव ज्यों-ज्यों परवान चढ़ रहा है, त्यों-त्यों नरेन्द्र मोदी बिहार में भी अपनी जगह बनाते और फैलाते जा रहे हैं। इसे एक अन्य सर्वे के उदाहरण से समझें। एबीपी न्यूज/नीलसन के अब तक तीन सर्वे आए हैं। पहला सर्वे 24 जुलाई को आया था जिसमें महागठबंधन को 129 और एनडीए को 112 सीटें मिली थीं। 15 सितंबर को आए उनके दूसरे सर्वे में कांटे की टक्कर थी जिसमें महागठबंधन के हिस्से में 122 और एनडीए के हिस्से में 118 सीटें आई थीं। लेकिन 7 अक्टूबर तक आते-आते परिदृश्य बदल गया। उनके तीसरे सर्वे में एनडीए को 128 सीटें मिल रही हैं और महागठबंधन को 112 सीटें। अन्य के खाते में 3 सीटें गई हैं। यानि एनडीए की सरकार पूर्ण बहुमत से बन रही है। वोटों के प्रतिशत की बात करें तो एनडीए को 42, महागठबंधन को 40 और अन्य को 18 प्रतिशत वोट मिल रहे हैं।
कह सकते हैं कि सर्वे सम्भावनाओं का खेल है और आँख मूंदकर किसी सर्वे पर ऐतबार नहीं करना चाहिए। फिर भी राजनीति में अगर आप रुचि रखते हों और चुनाव परिणाम को लेकर आपके भीतर उत्सुकता हो तो एक बार आप बारी-बारी से बिहार के चार मुख्य दलों जदयू, राजद, कांग्रेस और भाजपा के पटना स्थित पार्टी कार्यालय जाएं। इन कार्यालयों का नजारा देख आप स्वयं किसी निष्कर्ष पर पहुँचना चाहेंगे। पहले तीन दलों के कार्यालय में आपको थोड़े विश्वास, थोड़ी आशंका के साथ ‘परीक्षा ठीक से गुजर जाय’ वाला भाव दिखेगा लेकिन भाजपा के कार्यालय की चहल-पहल देख आपको लगेगा कि वहाँ ‘अच्छे दिन’ की प्रतीक्षा हो रही है।
बिहार के चार कोने में चार परिवर्तन रैली के बाद चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की योजना एक के बाद एक कई रैलियों की है। उनका अभियान जितना आक्रामक दिख रहा है उतना ही व्यवस्थित भी। मोदी के कद का प्रधानमंत्री लगभग हर जिले में खुद पहुँच रहा हो तो ये सचमुच एक बड़ी बात है। हालांकि देखा जाय तो पोस्टर से लेकर प्रचार तक नीतीश कुमार कहीं भाजपा से पीछे नहीं हैं। लेकिन उन्हें कदम-कदम पर जिस तरह लालू और उनके तथाकथित ‘जंगलराज’ को डिफेंड करना पड़ रहा है उसे उनके ‘हार्डकोर’ समर्थक भी पूरी तरह पचा नहीं पा रहे हैं। नीतीश की ‘विकासपुरुष’ वाली छवि अब भी कायम है, लोगों ने उन्हें बिल्कुल भुला दिया हो ऐसी बात भी नहीं, ‘मांझी’ समेत बाकी परेशानियों का हल भी नीतीश शायद निकाल लें लेकिन दो विपरीत हो चुके ‘ध्रुव’ जिन परिस्थितियों में और जिस तरह साथ आए हैं वो उनके कार्यकर्ताओं और महागठबंधन के नाम पर ‘कुर्बान’ हुए नेताओं को ‘सहज’ नहीं होने दे रहा है। ऊपर से लालू कभी खुद को ‘नक्सली’ कहकर, कभी ‘गौमांस’ पर बयान देकर तो कभी अपने बड़े बेटे के छोटे और छोटे के बड़े हो जाने को लेकर रोज नई मुसीबतें खड़ी कर रहे हैं सो अलग।
एक समय नरेन्द्र मोदी समेत अन्य भाजपा नेताओं को भोज पर आमंत्रित कर नीतीश ने अचानक वो कार्यक्रम स्थगित कर दिया था। हालांकि अब जाकर नीतीश इसके मूल में सुशील मोदी को बता रहे हैं लेकिन अगर ये सच भी हो तो बताने में शायद देर कर दी है उन्होंने। अब तो वो बीच रणभूमि में हैं और सर्वे अगर सच साबित हुए तो इसका मतलब ये होगा कि नरेन्द्र मोदी उनसे ‘छीनी गई थाली’ के बदले पूरा बिहार लेने जा रहे हैं।
मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप