बुधवार को जिला जदयू अध्यक्षा गुड्डी देवी के आवासीय परिसर स्थित कार्यालय में जिला अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ के अध्यक्ष महेंद्र ऋषिदेव की अध्यक्षता में पर्वत पुरुष दशरथ मांझी की 16वीं पुण्यतिथि मनाई गई। इस कार्यक्रम में जिले के तेरहो प्रखंड के अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ के प्रखंड अध्यक्ष सहित सक्रिय कार्यकर्ताओं की अच्छी-खासी उपस्थिति थी।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि सह मुख्य वक्ता के रूप में समाजसेवी-साहित्यकार डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी सहित मधुबनी से आए जिला जदयू प्रभारी प्रोफेसर शिव कुमार यादव, अनुसूचित जिला जदयू प्रभारी आनंद रजक, जिला जदयू अध्यक्षा श्रीमती मंजू कुमारी उर्फ गुड्डी देवी सहित उनकी टीम के कुछ हीरे-मोती नरेश पासवान, महेंद्र पटेल, डॉ.नीरज कुमार, डॉ.धर्मेंद्र राम, युगल पटेल, अशोक चौधरी, आशीष कुमार आदि मौजूद थे।
सबों ने पर्वत पुरुष दशरथ मांझी के पत्नी-प्रेम की कहानी सुनाकर पहाड़ काट 55 किलोमीटर की दूरी को 15 किलोमीटर में तब्दील करने के संकल्प की चर्चा के साथ-साथ सूबे के विकास पुरुष सह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा अनुसूचित जाति एवं जनजाति के सहयोग के अतिरिक्त न्याय के साथ विकास की विस्तार से घंटों चर्चाएं की।
अंत में शिक्षाविद डॉ.भूपेन्द्र मधेपुरी ने कहा कि माउंटेन मैन दशरथ मांझी की पत्नी फाल्गुनी की जिंदगी और मौत के बीच यह पहाड़ बाधक बनकर खड़ा रहा, इसीलिए मांझी ने संकल्प लिया कि पहाड़ के सीने को चीर कर दूरी घटा दूंगा ताकि कोई इस पहाड़ के कारण लंबी दूरी तय करते-करते फागुनी की तरह रास्ते में ही दम न तोड़ दे। डॉ मधेपुरी ने कहा कि पहाड़ की चोटी पर बैठकर दशरथ मांझी ने यह संकल्प गीत गुनगुनाया था-
इ पहड़िया कैलक जिंदगी बर्बाद सजनी !
जब तक ना तोड़ब ऐकड़ा, छोड़ब ना सजनी !
हम दे तानी तोहा के आवाज फागुनी….. !!
आगे बकरी बेचकर छैनी-हथौड़ी खरीदा और 24 से लेकर 46 वर्ष की उम्र यानी 22 वर्षों (1960 से 1982) तक अहर्निश पहाड़ को काटता रहा दशरथ मांझी।
डॉ.मधेपुरी ने कहा कि ताजमहल को बनने में भी 22 वर्ष लगे लेकिन उसके निर्माण में 20000 कुशल कारीगरों के अतिरिक्त शाहजहां की खुली तिजौरी भी थी और यहां एक छैनी, एक हथौड़ी और पत्नी प्रेम में पागल एक संकल्पी पति दशरथ मांझी….. यदि ताजमहल प्रेम का प्रतीक है तो दशरथ मांझी प्रेम की पराकाष्ठा। तभी तो नीतीश कुमार ने अपनी सरकार द्वारा उनके नाम दशरथ मांझी कौशल विकास योजना चलाकर उन्हें वैश्विक पहचान दिला दी है। उनके गांव गहलौर में- मांझी द्वार, मांझी म्यूजियम, मांझी स्मृति भवन, और मांझी रोड नामित करने के अलावे उन्हें पद्म पुरस्कार देने की केंद्र सरकार से अनुशंसा भी की। बदले में केंद्र सरकार ने मांझी के नाम डाक टिकट जारी कर दी। फिल्मकारों को आकर्षित होकर वहां जाना पड़ा। आमिर खान भी पहुंचे। सांसद रहने तक पप्पू यादव भी उनके पुत्र भगीरथ मांझी को ₹10000 प्रति माह सहयोग करते रहे।
अंत में डॉ.मधेपुरी ने कहा कि इंसानी जज्बे व जुनून की मिसाल है दशरथ मांझी। दीवानगी भी ऐसी जो प्रेम की खातिर जिद्द में बदली…….. जिद्द ऐसी कि कभी-कभी लोग घर में सोए रहते तब भी दशरथ मांझी पहाड़ काटता रहता। हम सब भी दशरथ मांझी की तरह मेहनत करें तो डॉ.कलाम के सपनों का भारत एक दिन विकसित भारत बनकर रहेगा।