Dr.Bhupendra Narayan Yadav Madhepuri, Dr.KK Mandal, Dr.Mahendra Narayan Pankaj and DrShanti Yadav on the occasion of Vaidehi ka antardwand at Ambika Sabhagar.

सृजन की क्षमता भरपूर अध्ययन की ऊर्जा से निकलती है- डॉ.मधेपुरी*

कवयित्री डॉ.शांति यादव द्वारा रचित “वैदेही का अंतर्द्वन्द्व” आठ सर्गों में लिखी गई एक खंडकाव्य है। इस खंड काव्य की समीक्षा हेतु कौशिकी क्षेत्र हिन्दी साहित्य सम्मेलन संस्थान के अंबिका सभागार में आयोजन किया गया। जिसमें नामचीन साहित्यकारों व कवियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। आयोजन का उद्घाटन कौशिकी के अध्यक्ष डॉ.केके मंडल ने किया। मौके पर कवयित्री डॉ.शांति यादव का सम्मेलन के अध्यक्ष व सचिव द्वारा अंगवस्त्रम, पाग, बुके, मोमेंटो आदि के साथ भरपूर सम्मान किया गया।

विद्वान उद्घाटनकर्ता डॉ.के.के. मंडल ने कहा कि ‘विदेह’ कहलाने वाले राजा जनक की छत्र-छाया में पली-बढ़ी सीता को स्वर्ण-मृग पाने की लालसा होना या फिर धनुर्विद्या में विशारद सीता का रावण द्वारा अपहरण-प्रसंग में स्वयं के बचाव के लिए कोई संघर्ष नहीं करना भी तो वैदेही के अंतर्द्वंद को दर्शाता है। इस तरह कवयित्री ने विभिन्न प्रसंगों को लेकर वैदेही के अंतर्द्वन्द्वों की व्याख्या इस खंडकाव्य में अत्यंत करीने से की है। डॉ.शांति यादव उच्च कोटि की विदुषी है। वह और आगे बढ़ेगी। निश्चय ही “वैदेही का अंतर्द्वन्द्व” एक साहित्यिक रचना है।

इस अवसर पर जनलेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव व राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत साहित्यकार डॉ.महेंद्र नारायण पंकज ने “वैदेही का अंतर्द्वन्द्व” की विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि नारी सशक्तिकरण की दिशा में यह खंडकाव्य मील का पत्थर साबित होगा। उन्होंने कहा कि देश की बेटियों को अब वैदेही की भांति अपना जीवन “बिरोग” में व्यतीत करने की विवशता नहीं होगी। अब बेटियां ना तो जीवन में संघर्ष को स्थगन देंगी और ना ही जीवन की गति को कभी विराम देंगी।

सम्मेलन के सचिव डाॅ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी ने कहा कि “वैदेही का अंतर्द्वन्द्व” खंडकाव्य में भाषाई स्वरूप, काव्य-शिल्प, भरपूर विजन एवं अद्भुत सृजन के दर्शन होते हैं। यह सच है कि सृजन की क्षमता भरपूर अध्ययन की ऊर्जा से निकलती है। तभी तो कवयित्री ने वाल्मीकि रामायण, तुलसीकृत रामचरितमानस, गीतावली, भवभूति कृत उत्तर रामचरितमानस, कालिदास कृत रघुवंशम, दशरथ जातक सहित विभिन्न महान प्रकाशकों की संदर्भित रचनाओं के गहन अध्ययन की चर्चा पुस्तक की भूमिका में ही की है। वह यह कि रामकथा का सर्वाधिक लोकप्रिय प्रसंग है- लक्ष्मण-रेखा, परंतु इसकी चर्चा ना तो बाल्मीकि रामायण में है और ना ही रामचरितमानस में।

समीक्षात्मक गोष्ठी में प्रो.मणि भूषण वर्मा, डॉ.सीताराम शर्मा, डॉ.विश्वनाथ विवेका, प्रो.शचिंद्र, डॉ.शैलेंद्र कुमार, आचार्य योगेश्वर डॉ.प्रमोद कुमार सूरज. डॉ. गजेंद्र कुमार, डॉ.सुरेश भूषण, डॉ.ओमप्रकाश ओम, डॉ.यशवंत कुमार ने भी अपने-अपने विचार व्यक्त किए जिनके संबोधन का सार यही है कि आस्था, धर्म, राजनीति से सर्वथा अलग भावभूमि पर इस खंडकाव्य की रचना हुई है। अंत में राकेश कुमार द्विजराज, अरुण कुमार (फर्जी हास्य कवि), अर्चना कुमारी, रमन जी, अभिनंदन यादव, सियाराम यादव मयंक, शिवजी साह, ध्यानी यादव, नितिन कुमार, श्याम बहादुर पाल, प्रदीप कुमार सिंह कवियों ने अपनी प्रतिनिधि कविताओं का पाठ कर संस्थापक पंडित युगल शास्त्री प्रेम को याद किया। कार्यक्रम सहयोगी बने रहे डॉ.अरुण कुमार एवं श्यामल कुमार सुमित्र।

 

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