Giriraj Singh

क्या ‘सवर्णों’ को स्वीकार्य होगा भाजपा का यादव, पिछड़ा या अतिपिछड़ा मुख्यमंत्री..?

आमतौर पर चुनाव में सभी पार्टियां अपने वोटबैंक को बनाए रखने के साथ-साथ विपक्षी पार्टी (या पार्टियों) के वोटबैंक में सेंध लगाने की कोशिश करती हैं। आज के ‘तथाकथित’ लोकतंत्र में ये ‘तथ्य’ अब ‘अखंड सत्य’ की तरह स्वीकार्य है। इसका अपवाद ढूँढ़ने की कोशिश करना भी बेमानी हो चुका है। इसीलिए ये कहने में कुछ भी नया नहीं कि बिहार चुनाव में भी यही हो रहा है। नया ये है कि अब अपने वोटबैंक को जोड़ने की जगह दूसरे के वोटबैंक को तोड़ने की कोशिश ज्यादा हो रही है। केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह का ये कहना कि भाजपा का अगला मुख्यमंत्री यादव, पिछड़ा या अतिपिछड़ा होगा, इस बात का स्पष्ट प्रमाण है।

अभी हाल ही में भाजपा के वरिष्ठ नेता और केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने बयान दिया कि भाजपा की ओर से राज्य का अगला मुख्यमंत्री यादव, पिछड़ा या अतिपिछड़ा होगा। कोई सवर्ण मुख्यमंत्री नहीं बनेगा। गिरिराज सिंह बहुत बड़े ‘बयानवीर’ हैं और कई मौकों पर अपने बयानों से भाजपा को असहज स्थिति में डाल चुके हैं। कई बार उन्हें केन्द्रीय नेतृत्व की ‘फटकार’ भी लग चुकी है। लेकिन इस बार इतने बड़े मौके पर उन्होंने इतना बड़ा बयान दिया और पार्टी ने इसका आधिकारिक खंडन नहीं किया, इसका सीधा मतलब ये है कि उन्होंने ये बयान दिया नहीं, बल्कि उनसे दिलवाया गया है।

बिहार में मुकाबला नीतीश के नेतृत्व वाले महागठबंधन और भाजपा की अगुआई वाले एनडीए के बीच है। हालांकि कुछ पार्टियों ने ऐन चुनाव के मौके पर ‘थर्ड फ्रंट’ बनाकर और तारिक अनवर का चेहरा आगे कर मुकाबले को त्रिकोणात्मक बनाने की कोशिश की है लेकिन ऐसा कुछ होता नहीं दिख रहा। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ये थर्ड फ्रंट भाजपा के ‘पॉलिटिकल मैनेजमेंट’ और ‘सोशल इंजीनियरिंग’ का कमाल है और ऐसा नहीं है तब भी इससे सीधा फायदा उसी को हो रहा है। लेकिन इतने के बावजूद भाजपा संतुष्ट नहीं हुई और गिरिराज से इतना अहम बयान दिलवाया। भाजपा के रणनीतिकारों ने इस बयान से जुड़े तमाम पहलुओं पर शायद विचार ही नहीं किया।

यहाँ एक साथ कई सवाल उठते हैं। पहला ये कि भाजपा अगड़ों के अपने वोटबैंक को जोड़ने से ज्यादा यादव, पिछड़े या अतिपिछड़े यानि लालू-नीतीश के वोटबैंक को तोड़ने की कोशिश क्यों कर रही है..? दूसरा, क्या भाजपा का पिछड़ा मुख्यमंत्री अगड़ों को स्वीकार्य होगा..? तीसरा, अगर स्वीकार्य होगा तो क्या इसका मतलब ये है कि अगड़ों का एकमात्र विकल्प भाजपा है..? चौथा, अगर ऐसा नहीं है तो भाजपा सवर्णों को ‘टेकेन फॉर ग्रान्टेड’ क्यों मान रही है..? और पाँचवाँ, अगर मुख्यमंत्री अगड़ा, पिछड़ा या अतिपिछड़ा होगा तो सवर्णों को क्या देगी भाजपा..?

टिकट बंटवारे को देखें तो भाजपा ने दो दर्जन से ज्यादा यादव उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। महागठबंधन से नाराज लोगों को खास तरजीह दी है। महादलितों पर तो वो मेहरबान है ही। और अब यादव, पिछड़ा या अतिपिछड़ा मुख्यमंत्री। क्या सवर्णों को लेकर भाजपा ‘ओवरकॉन्फिडेन्ट’ है..?  सुशील कुमार मोदी, प्रेम कुमार (और मुस्लिम उम्मीदवार शाहनवाज हुसैन) को छोड़ मुख्यमंत्री पद के ज्यादातर उम्मीदवार – राधामोहन सिंह, राजीव प्रताप रूडी, मंगल पांडेय, सीपी ठाकुर, अश्विनी चौबे और स्वयं गिरिराज सिंह – अगड़ी जाति से आते हैं। ऐसे में भाजपा का ये दांव कहीं उलटा ना पड़ जाय। इसकी सम्भावना तब और ज्यादा हो जाती है जबकि संघ प्रमुख मोहन भागवत के ‘आरक्षण की समीक्षा’ वाले बयान को ‘अपने’ लोगों के बीच ले जाने और भुनाने में लालू और नीतीश कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।

भाजपा के तमाम वरिष्ठ नेता बयान देते रहे हैं कि पार्टी का संसदीय बोर्ड मुख्यमंत्री पद का फैसला करेगा। तमाम व्यंग्य और उकसावों के बावजूद भाजपा ने किसी चेहरे को आगे करने की जगह चुप्पी बनाए रखी थी अब तक। कारण साफ है, वहाँ कोई ऐसा है ही नहीं जिसकी भाजपा और एनडीए में वैसी स्वीकार्यता हो जैसी महागठबंधन में नीतीश कुमार की है। ऐसे में गिरिराज से बयान दिलवाकर भाजपा का संयम तोड़ना समझ से परे है। मुख्यमंत्री किस जाति का होगा, इसमें उलझने और उलझाने से बेहतर है कि भाजपा अपने अभियान के केन्द्र में नरेन्द्र मोदी को रखकर ही आगे बढ़े।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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