इक्कीसवीं सदी में भी तुम नौवीं पास क्यों रह गए तेजस्वी..? जो वैसी सुविधाओं में पला हो जिनकी कल्पना तक सबके बस की बात नहीं… राज्य से लेकर केन्द्र तक जिसके परिवार की तूती बोलती हो… जिसके घर में पिता ही नहीं माँ के भी मुख्यमंत्री होने का बिरला संयोग हो… जिसमें एक बड़ी राजनीतिक पार्टी अपना भविष्य देख रही हो… जिसे आज के युवा-सपनों का प्रतीक बनाकर लाखों लोगों के बीच मंच पर खड़ा किया जा रहा हो, वो केवल नौवीं पास होकर रह जाय, तो सवाल उठेंगे ही। यहाँ बात लालू प्रसाद यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव की हो रही है जिनकी सम्पत्ति तो करोड़ों में है लेकिन जाने किस मजबूरी में वो नौवीं पास हैं केवल..!
कम पढ़ा होना गुनाह नहीं। ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं जब कम पढ़े-लिखे और यहाँ तक कि अनपढ़ लोगों ने भी इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया है। अनपढ़ होने के बावजूद अकबर बादशाह हुए और कागज ना छूने के बावजूद कबीर ने घर-घर में जगह बनाई। लेकिन उनके साथ क्या परिस्थितियां रहीं और उनके सामने कैसी चुनौतियां थीं, ये भी इतिहास में दर्ज है। आज हम इक्कीसवीं सदी में हैं और ग्वोवलाइजेशन के दौर में दुनिया जहाँ छोटी हुई है वहीं जीवन और जटिल हो गया है। ऐसे में तेजस्वी जैसे युवा का केवल नौवीं पास होना हैरान करता है।
आरजेडी सुप्रीमो ने इस बार अपने दोनों बेटों को चुनाव-मैदान में उतारा है। छोटे बेटे तेजस्वी राघोपुर से भाग्य आजमा रहे हैं जहाँ से लालू और राबड़ी दो-दो बार एमएलए रह चुके हैं। शनिवार, 3 अक्टूबर को उन्होंने अपना नामांकन भरा। नामांकन-पत्र के साथ दायर हलफनामे के अनुसार वे दिल्ली के जाने-माने स्कूल डीपीएस से केवल नौवीं पास हैं और पेशे से समाजसेवी और व्यवसायी हैं। मैट्रिक करने में वो भले ही सफल ना हो पाए हों लेकिन ‘व्यवसाय’ में उन्होंने जरूर सफलता पाई है। 2014-15 के सालाना आयकर रिटर्न में उनकी आमदनी 5 लाख से ज्यादा बताई गई है और उनकी कुल सम्पत्ति है 1 करोड़ 40 लाख रुपये। हलफनामे के अनुसार अलग-अलग बैंकों में तेजस्वी के सात अकाउंट हैं और उन्होंने कई कम्पनियों में निवेश कर रखा है। उनके पास दस तोले सोने की ज्वेलरी और 1 लाख बीस हजार नकद हैं। 34 लाख रुपये का बैंक लोन भी है उनके ऊपर।
दुनिया जानती है कि तेजस्वी के पिता लालू प्रसाद यादव अत्यन्त साधारण परिवार से आते हैं। उनका बचपन संघर्षों में बीता। मुख्यमंत्री होने तक वो अपने बड़े भाई के चपरासी क्वार्टर में रहे और उनके ज्यादातर बच्चे वहीं हुए। तमाम विपरीत परिस्थितियों और छात्र-जीवन में ही राजनीति में कूद पड़ने के बावजूद वो ना केवल पटना यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस में एमए हैं बल्कि एलएलबी की डिग्री भी है उनके पास। रेलमंत्री के रूप में उनके सफल प्रयोगों के बाद बड़ी-बड़ी जगहों से उन्हें मैनेजमेंट के छात्रों को ‘पढ़ाने’ के बुलावे आए और बाकायदा जाकर उन्होंने ‘पढ़ाया’ भी। ऐसे में उनकी अगली पीढ़ी से उनके आगे नहीं तो उनके बराबर या कम-से-कम उनके आसपास होने की उम्मीद तो होगी ही।
एक तर्क हो सकता है कि तेजस्वी क्रिकेटर रहे हैं और इस कारण पढ़ाई पर कम ध्यान दे पाए। अगर उन्होंने क्रिकेट में ही करियर बनाया होता तो ये तर्क स्वीकार सहज स्वीकार्य होता। आज 12वीं पास तेन्दुलकर से भला कौन पूछेगा कि उन्होंने आगे की पढ़ाई क्यों नहीं की। लेकिन जब क्रिकेट में तेजस्वी का करियर नहीं बना और राजनीति में भी उन्हें संघर्ष करना पड़ा हो अब तक, ऐसा नहीं कहा जा सकता, तब घर का ऐसा कौन-सा भार था उनके ऊपर कि वे पढ़ाई की जगह तथाकथित ‘व्यवसाय’ में लग गए और पिता लालू या माँ राबड़ी ने उन्हें डाँटा नहीं..?
अक्सर किसी का पढ़ना, कम पढ़ना या ना पढ़ना सामाजिक स्थितियों पर निर्भर करता है। शिक्षा या ज्ञान के स्तर के अनुपात में ही कोई समाज ऊँचा उठता है और जब आप समाज के सबसे ऊँचे पायदान पर हों तब पढ़ना बहुत हद तक आपकी सामाजिक जिम्मेदारी हो जाती है क्योंकि तब आप हजारों-लाखों के ‘रोल मॉडल’ हो जाते हैं। इसीलिए ये सवाल उठेगा भी और गूँजेगा भी कि इक्कीसवीं सदी में भी तुम नौवीं पास क्यों रह गए तेजस्वी..?
मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप