Madhepura Badalti Disha aur Dasha

“मधेपुरा बदलती दिशा और दशा” शीर्षक सौ फ़ीसदी सही- डॉ.मधेपुरी

जन लेखक संघ के जिला कमिटी के तत्वावधान में केंद्रीय कार्यालय डॉ.मधेपुरी मार्ग, साहित्यकार नगर, मधेपुरा वार्ड नंबर 1 में सुकवि डॉ.प्रमोद कुमार सूरज की अध्यक्षता में प्रो.सच्चिदानंद यादव द्वारा लिखित मधेपुरा बदलती दिशा और दशा नामक पुस्तक की समीक्षात्मक संगोष्ठी संपन्न हुई। उद्घाटनकर्ता के रूप में तिलकामांझी विश्वविद्यालय भागलपुर के पूर्व प्रति कुलपति डॉ.केके मंडल ने विस्तार से कहा कि प्रो.सच्चिदानंद यादव की पुस्तक मधेपुरा बदलती दिशा और दशा सिर्फ मधेपुरा ही नहीं विश्व इतिहास को सामने लाया है। डॉ.विनय कुमार चौधरी ने कहा कि लेखक ने मधेपुरा को साहित्यिक गतिविधियों व साहित्य रचना से परिचित कराया है। डॉ.अमोल राय ने कहा कि पुस्तक मधेपुरा में हुए शिक्षण संस्थान की स्थापना एवं शैक्षिक कार्य से अवगत कराती है। पूर्व सीनेटर हीरा कुमार सिंह ने कहा कि इस पुस्तक में विश्व इतिहास की झलक मिलती है।

जन लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव डॉ.महेंद्र नारायण पंकज ने कहा कि पुस्तक में मधेपुरा का ही नहीं विश्व इतिहास और राजनीतिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक विषय पर विस्तृत चर्चा की गई है। प्राचार्य डॉ.जवाहर पासवान ने अपने गुरु सह पुस्तक के लेखक प्रो.सच्चिदानंद के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए कहा कि अवकाश प्राप्त करने के बाद भी गुरुवर लेखनी के माध्यम से हमारे बीच ज्ञानकोष लुटा रहे हैं। ईश्वर उन्हें दीर्घजीवी बनाए रखें यही प्रार्थना है।  स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ.सीताराम शर्मा ने पुस्तक में मधेपुरा के इतिहास को परोसने की चर्चा करते हुए लेखक से अनुरोध किया कि पुस्तक के शीर्षक को बदलना चाहिए।

अंत में समाजसेवी-साहित्यकार डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी ने कहा कि कोई भी पुस्तक या व्यक्ति पूर्ण नहीं होता। शिवनंदन बाबू एवं भूपेंद्र बाबू के साथ-साथ इस पुस्तक को संदर्भित करते हुए उन्होंने शिक्षा के महत्व एवं औचित्य को विस्तार से रखा। चंद वरिष्ठ साहित्यकारों द्वारा लेखक प्रो.सच्चिदानंद की पुस्तक की समीक्षा करते हुए यह कहे जाने पर कि पुस्तक के शीर्षक को भी बदल देना चाहिए इस पर डॉ.मधेपुरी ने तर्क देते हुए कहा कि “मधेपुरा बदलती दिशा और दशा” शीर्षक सौ फ़ीसदी सही है।

मौके पर साहित्यकार सियाराम यादव मयंक, डॉ.सिकंदर गुप्ता, डॉ.भूपेन्द्र भूप, शंभू शरण भारतीय, राकेश कुमार द्विजराज, सुभाष चंद्र प्रभाकर, धीरज कुमार, शैलेंद्र पोद्दार आदि ने अपने-अपने विचार प्रकट किए।

 

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