रसायन शास्त्र के लोकप्रिय शिक्षक व पदाधिकारी के रूप में काम से नहीं थकने वाले साहित्यानुरागी डॉ.योगेंद्र प्रसाद यादव अपने गुरु समाजसेवी-साहित्यकार व भौतिक शास्त्र के लोकप्रिय प्रोफेसर डॉ.भूपेन्द्र नारायण मधेपुरी जैसे सफल शिक्षक रहे। प्रोफ़ेसर योगेंद्र अपने गुरु डॉक्टर मधेपुरी के वृंदावन निवास के सामने ही आजाद नगर में जिंदगी के सर्वाधिक समय गुजारे। आरंभ में आमने-सामने भाड़े के घर में और बाद में निज आवास बनाकर।
भूपेन्द्र नारायण मंडल वाणिज्य महाविद्यालय में प्रोफेसर योगेंद्र अपने विषय में तब लोकप्रिय हुए थे जब कौशिकी क्षेत्र हिन्दी साहित्य सम्मेलन के वर्तमान अध्यक्ष डॉ.केके मंडल वहां के प्राचार्य हुआ करते थे। बाद में टीपी कॉलेज के रसायन विभागाध्यक्ष के साथ-साथ वे शिक्षक संघ के अध्यक्ष भी चुने गए।
भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय में सर्वप्रथम उन्हें परीक्षा विभाग में ओएसडी बनाया गया और अपने कार्यों में नहीं थकने के कारण सीसीडीसी, डीएसडब्ल्यू, इंस्पेक्टर आफ कॉलेजेज (विज्ञान) आदि बनते चले गए और लोकप्रियता बटोरते रहे।
अपने गुरु डॉ.मधेपुरी की भांति साहित्य से लगाव एवं कविता आदि लिखते रहने के कारण कौशिकी के अध्यक्ष डॉ.केके मंडल, सचिव डॉ.मधेपुरी सहित अन्य सदस्य विदुषी डॉ.शांति यादव, पीजी जंतु विज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो.(डॉ.)अरुण कुमार, पूर्व कुलसचिव प्रोफेसर शचिंद्र, प्राचार्य श्यामल किशोर यादव, कवि सियाराम यादव मयंक, प्रो.मणि भूषण वर्मा, डॉ. सिद्धेश्वर कश्यप, डॉ.आलोक कुमार, डॉ.नरेश कुमार, डॉ.विनय चौधरी, डॉ.संतोष कुमार सिन्हा, श्यामल कुमार सुमित्र आदि ने प्रोफ़ेसर योगेंद्र को मौन श्रद्धांजलि देते हुए दिवंगत आत्मा की चिर शांति एवं दुख की घड़ी में शोक संतप्त परिजनों को साहस प्रदान करने हेतु ईश्वर से प्रार्थना की।
अंत में शोकोदगार व्यक्त करते हुए सचिव डॉ.मधेपुरी ने कहा कि बंगलुरु (कर्नाटक) के एस्टर सीएमआई हॉस्पिटल में प्रोफेसर योगेंद्र ने 14 मई की रात 11:00 बजे अंतिम सांस ली। वे अप्रैल में ही अपनी आंख के मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराने बंगलुरु में रह रहे बेटे प्रणव प्रकाश व प्रणय प्रकाश के पास गए थे परंतु हार्ट प्रॉब्लम होने के कारण एंजियोग्राफी हुआ। ठीक हो गए….. लेकिन दो-तीन रोज बाद सांस की दिक्कत, डायबिटीज, इंफेक्शन आदि से संघर्ष करते-करते जिंदगी की जंग हार गया वह योद्धा योगेंद्र।
आदर्श महाविद्यालय घैलाढ के संस्थापक व सचिव होने के कारण उनके पार्थिव शरीर को कालेज परिसर में ही उनके बेटे द्वय एवं बेटी डेजी ने मुखाग्नि दी और भाई कमलेश्वरी, उपेंद्र सहित बहन फुलो दाय, दुर्गा दाय आदि परिजनों ने एक ही दिन में नख-बाल कर कर्मकांड समापन करने का उदाहरण पेश किया, जैसा प्रोफ़ेसर योगेंद्र चाहते रहे और बोलते रहे थे।