Lujendra Ojha

नासा ने नहीं, लुजेन्द्र ओझा ने खोजा मंगल पर पानी

अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने 28 सितम्बर को एक बड़ा खुलासा किया। नासा ने कहा कि मंगल ग्रह पर बहते पानी के सबूत मिले हैं। इस खोज के बाद मंगल पर जीवन की सम्भावना बढ़ गई है। जब सोमवार को नासा अमेरिकी समय के हिसाब से दिन के 11.30 बजे अपने मुख्यालय के ‘जेम्स वेब ऑडिटोरियम’ में आयोजित प्रेस कांफ्रेस में ये ऐतिहासिक घोषणा कर रहा था तब नासा के ग्रह-विज्ञान निदेशक जिम ग्रीन, मंगल अन्वेषण कार्यक्रम के प्रमुख वैज्ञानिक माइकल मेयेर, नासा के एमेस अनुसंधान केन्द्र की मैरी बेथ विल्हेल्म और एरिजोना यूनिवर्सिटी में प्लैनेटरी जियोलॉजी के प्रोफेसर एल्फ्रेड माकईवेन के साथ पीएचडी का एक छात्र भी मौजूद था। उस ‘असाधारण’ छात्र का नाम है लुजेन्द्र ओझा। ‘असाधारण’ इसलिए कि मंगल पर बहते पानी को नासा से पहले इस छात्र ने देखा था।

मात्र 21 साल के लुजेन्द्र ओझा मूल रूप से काठमांडू (नेपाल) के हैं और अटलांटा के जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में प्लैनेटरी साइंस में पीएचडी कर रहे हैं। इस युवा वैज्ञानिक ने माकईवेन के साथ मंगल ग्रह पर जल सक्रियता की सम्भावना का अध्ययन किया है। मंगल ग्रह पर देखी गई जिन गहरी लकीरों (मंगल की सतह पर दिखने वाले गड्ढ़ों की ढलान पर बनी उँगली जैसी रेखाएँ) को अब तरल पानी के सामयिक बहाव से जोड़कर देखा जा रहा है, उन्हें साल 2011 में डिग्री कोर्स के दौरान लुजेन्द्र द्वारा किए गए शोध से ही पहचाना गया था। विज्ञान और प्राविधि की साइट inverse.com ने अगर लुजेन्द्र को नासा के प्रेस-कांफ्रेस में मौजूद ‘अनोखा’ व्यक्ति कहा तो यह अकारण नहीं है।

बहरहाल, आप लुजेन्द्र ओझा के वेबसाइट www.lujendraojha.net  पर जाएं तो होम पेज पर आपको हाथ में गिटार लिए लंबे बालों वाला ‘रॉकस्टार’ दिखेगा। पहली नज़र में आपको लगेगा कि शायद आपने कोई गलत साइट लॉग इन कर दिया है। लेकिन जब थोड़ी देर ठहरकर आप होम पेज के बीचोंबीच लिखा ‘स्टेटमेंट’ पढ़ेंगे और बारी-बारी से बाकी पन्नों को खोलेंगे तब आप नैसर्गिक प्रतिभा के धनी एक युवा वैज्ञानिक के ‘अद्भुत संसार’ को देख रहे होंगे।

लुजेन्द्र ओझा उर्फ लुजु को एरिजोना यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान ‘संयोगवश’ इस बात के सबूत मिले थे कि मंगल पर पानी तरल रूप में मौजूद है। उन्हें मंगल की सतह की तस्वीरों के अध्ययन के बाद इस बात के सबूत मिले थे। इस खोज को ‘भाग्यशाली संयोग’ मानने वाले लुजेन्द्र शुरुआत में इसे समझ नहीं पाए। मंगल की सतह पर बने गड्ढ़ों का कई साल तक अध्ययन करने के बाद वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि इनकी ढलान पर बनी गहरी लकीरें बहते खारे पानी के कारण बनी हैं। ये ‘लकीरें’ गर्मियों में बढ़ जाती थीं और सर्दियां आते-आते गायब हो जाती थीं। सावधानीपूर्वक अध्ययन और विशलेषण के बाद अब वैज्ञानिक यह कहने को तैयार हैं कि ये लकीरें वास्तव में जलधाराएं हैं। इस तरह नासा ने लुजेन्द्र की बात पर ही मुहर लगाई है।

मंगल पर तरल पानी की मौजूदगी की पुष्टि होने के बाद ये तय हो गया है कि यह ग्रह भौगोलिक रूप से अब भी सक्रिय है। यही नहीं अब तो वहाँ माइक्रोब्स पाए जाने की सम्भावना भी जग गई है। साथ ही सतह के नजदीक पानी के स्रोतों की पहचान होने से भविष्य में मंगल ग्रह पर जाने वाले अंतरिक्ष यात्रियों का वहाँ रहना भी आसान हो सकता है। क्या पता कल होकर वहाँ मानव अपनी बस्तियाँ ही बसा ले।

साइंस फिक्शन में गहरी रुचि रखने वाले लुजेन्द्र ओझा स्ट्रिंग थ्योरी, मल्टीपल यूनिवर्स और टाइम ट्रेवल जैसे विचारों से खासा प्रभावित रहे हैं। अपने हाई स्कूल के दिनों में वे आगे चलकर ‘टाइम-मशीन’ का आविष्कार करने के बारे में सोचते थे। उनका ऐसा कोई आविष्कार तो अब तक सामने नहीं आया है लेकिन मंगल पर पानी की खोज में उन्होंने जो भूमिका निभाई है उसने विज्ञान की दुनिया में उनका सम्मानित स्थान तो सुरक्षित कर ही दिया है। सम्भावनाओं के इस उदीयमान पुंज को मधेपुरा अबतक की शुभकामनाएं।

  मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

सम्बंधित खबरें