विश्व विख्यात शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ की 107वीं जयंती समाजसेवी-साहित्यकार डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी ने अपने निवास वृंदावन में बच्चों के बीच मनाई। उन्होंने बच्चों से कहा कि बिस्मिल्लाह खाँ बेमिसाल शहनाई वादक ही नहीं थे बल्कि वे सुर व संगीत को इबादत मानकर काशी के मंदिरों में निरंतर शहनाई बजाते थे। पांचों वक्त नमाज पढ़ने वाले शहनाई के जादूगर को काशी नगरी में गंगा नदी से बेपनाह लगाव था। उनकी शहनाई में ठुमरी अंदाज भरा होता था।
डॉ.मधेपुरी ने बच्चों से यह भी कहा कि बिहार के डुमरांव में आज ही के दिन 21 मार्च 1916 को एक मुस्लिम परिवार में एक नन्हा बालक कमरुद्दीन जन्म लिया था जो आगे चलकर विश्व प्रसिद्ध शहनाई वादक भार रत्न बिस्मिल्लाह खाँ बन गया। वे काशी में रह कर शहनाई वादन की शिक्षा ली थी। सर्वप्रथम 14 वर्ष की उम्र में ही उन्हें इलाहाबाद के संगीत परिषद में शहनाई वादन का मौका मिला। फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा उन्होंने। 15 अगस्त 1947 को लाल किले के प्राचीर से शहनाई वादन कर उन्होंने इतिहास रच दिया। सहज व सरल जीवन जीने वाले शहनाई के जादूगर को 2001 में सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारतरत्न से सम्मानित किया गया। भला क्यों नहीं, जब भी कोई भारतीय पत्रकार विदेशों में उनके शहनाई वादन के दौरान तालियों की गड़गड़ाहट के बाबत उनकी खुशियों का इजहार सुनना चाहते तो वे बराबर यही कहा करते- “विदेशों में बिस्मिल्लाह खाँ शहनाई नहीं बजाता है, वहां तो भारत शहनाई बजा रहा होता है।”