20 सितम्बर हमारे पड़ोसी नेपाल के लिए नया सूर्योदय लेकर आया। इस दिन 239 साल के राजतंत्र (शाहवंश का शासन) और 7 साल के अंतरिम संविधान (2008 से नया संविधान लागू होने तक) के बाद नेपाल का पहला लिखित संविधान लागू हुआ। इस संविधान के लागू होते ही दुनिया का एकमात्र ‘हिन्दू राष्ट्र’ नेपाल ‘धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य’ में तब्दील हो गया। इस ऐतिहासिक संविधान को नेपाल के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. रामबरन यादव ने बीते रविवार को आधिकारिक तौर पर राष्ट्र को समर्पित किया।
कुछ विश्व-नागरिक होने के नाते तो कुछ इस कारण कि नेपाल ना केवल ‘सीमा’ से बल्कि ‘स्वभाव’ और ‘संस्कृति’ से भी भारत के बेहद करीब है, हमें नेपाल को बधाई देते हुए ये जानने की कोशिश करनी चाहिए कि उसके संविधान में खास क्या है। राजतंत्र के ‘अवशेष’ पर ‘लोकतंत्र’ की नींव रखना कतई आसान नहीं था लेकिन नेपाल बड़े धैर्य के साथ ‘परिवर्तन’ के लम्बे दौर से गुजरा है। तो चलिए, जानते हैं नेपाल के संविधान से जुड़ी 21 जरूरी बातें।
एक, “नेपाल का संविधान – 2072 बीएस” लागू होने की घोषणा से पहले राष्ट्रपति ने इसकी पाँच प्रतियों पर हस्ताक्षर किए। उन्होंने कहा कि नए संविधान ने गणराज्य को अब एक संस्थाबद्ध रूप दे दिया है।
दो, बीएस का अर्थ विक्रम संवत् है। ईसवी सन में मौजूदा वर्ष 2015 है लेकिन नेपाल में विक्रम संवत् लागू है। विक्रम संवत् में वर्ष 2072 चल रहा है।
तीन, नेपाल के इस नए संविधान में 37 संभाग, 304 अनुच्छेद और 7 उपबंध हैं।
चार, 601 सदस्यों वाली संविधान सभा में 507 सदस्यों ने इसके पक्ष में और 25 सदस्यों ने विरोध में मतदान किया। तराई क्षेत्र के 69 सदस्य संविधान बनाने की प्रक्रिया का बहिष्कार करते हुए गैरमौजूद रहे। इस संविधान सभा के अध्यक्ष सुभाषचंद्र नेमवांग थे।
पाँच, नए संविधान के लागू होने के साथ ही अंतरिम संविधान रद्द हो गया है और संविधान सभा नियमित संसद में बदल गई है।
छह, संविधान लागू होते ही नेपाल की राजशाही अब इतिहास की बात हो गई। नेपाल अब संघीय गणराज्य होगा और संघवाद इसका मूल सिद्धांत।
सात, भारत की तरह नेपाल में भी राष्ट्रपति देश के संवैधानिक राष्ट्राध्यक्ष होंगे और कार्यकारी शक्तियां प्रधानमंत्री के पास होंगी।
आठ, धर्मनिरपेक्षता संविधान का दूसरा मूल सिद्धांत होगा। नेपाल के ‘धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र’ में सभी धर्मों को स्वतंत्रता तो होगी लेकिन राष्ट्र का कर्तव्य सनातन धर्म और उसकी संस्कृति को बचाना होगा।
नौ, नए धर्मनिरपेक्ष संविधान में गाय को नेपाल का राष्ट्रीय पशु घोषित किया गया है। गाय को अब संवैधानिक संरक्षण मिल गया है यानि गोहत्या पर पाबंदी होगी।
दस, एक समुदाय के प्रभुत्व वाले पुराने ढांचे से निकलकर नेपाल में ‘इन्क्लूसिवनेस’ यानि आर्थिक समानता पर आधारित समतामूलक समाज की स्थापना होगी।
ग्यारह, आरक्षण और कोटा व्यवस्था के जरिए वंचित, क्षेत्रीय और जातीय समुदायों के सशक्तिकरण की व्यवस्था संविधान में की गई है।
बारह, संविधान में तीसरे लिंग यानि थर्ड जेंडर को भी मान्यता दी गई है।
तेरह, नेपाल में अब सात नए राज्य होंगे। संघवाद की भावना के अनुरूप इन राज्यों, केन्द्र और स्थानीय शासन की अपनी-अपनी शक्तियां होंगी। इन राज्यों के नाम और सीमाएं अभी तय नहीं हैं।
चौदह, नेपाल में अब संसदीय सरकार होगी। यहाँ दो सदनों वाली संसद, एक सदन वाली विधान सभा और जिला, प्रांतीय तथा संघीय स्तरों पर अर्थात् तीन स्तरीय न्यायपालिका होगी।
पन्द्रह, नए संविधान के तहत संविधान परिषद् मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करेगी। सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट और जिला जजों की नियुक्ति न्यायिक परिषद् करेगी।
सोलह, नेपाली देश की राष्ट्रीय भाषा बनी रहेगी। हालांकि नए संविधान में सभी जातीय भाषाओं को मान्यता दी गई है और प्रांतीय सभाओं को अपनी आधिकारिक भाषा चुनने का अधिकार दिया गया है।
सत्रह, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मूल अधिकारों की लम्बी सूची बनाई गई है। इनकी अवहेलना पर अदालत में सुनवाई हो सकेगी।
अठारह, नेपाली महिलाओं को विदेशी पुरुष से शादी करने पर अपनी संतान को नेपाली नागरिकता देने का अधिकार होगा।
उन्नीस, संविधान की मूल भावना नेपाल के शासन में हर नेपाली नागरिक की बराबर की भागीदारी सुनिश्चित करना है। चुनाव में ‘आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली’ इसी दिशा में उठाया गया कदम है।
बीस, संविधान की प्रस्तावना में बहुदलीय लोकतांत्रिक प्रणाली, मानवाधिकार, वोट देने का अधिकार, प्रेस की आजादी और कानून आधारित सामाजवाद की बात कही गई है।
इक्कीस, नए संविधान के लागू होने के बाद राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, संसद अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष के पदों के लिए नए सिरे से चुनाव होंगे। ये चुनाव एक महीने के अन्दर कराने होंगे।
बता दें कि साल 2008 में माओवादियों न संविधान सभा का चुनाव जीतकर देश से राजशाही को समाप्त किया था लेकिन संविधान सभा नया संविधान बनाने में नाकाम रही थी। 2012 में पहली संविधान सभा को भंग कर दिया गया था। दूसरी संविधान सभा का गठन 2013 में हुआ था।
इस संविधान को लेकर नेपाल में जहाँ एक ओर जश्न है वहीं देश के कुछ हिस्सों में तनाव और हिंसा का माहौल भी है। मधेसी, थारू, राजशाही में आस्था रखनेवाले, नेपाल को हिन्दू राष्ट्र बनाने के समर्थक और युनाइटेड कम्युनिस्ट पार्टी नेपाल (माओवादी) से अलग हुआ गुट इसका विरोध कर रहे हैं। भारत की सीमा और संस्कृति से सीधे तौर पर जुड़े मधेसियों को सात प्रांतों वाले संघीय ढांचे पर ऐतराज है। महिला अधिकार कार्यकर्ता महिलाओं के लिए अधिक अधिकार की मांग कर रहे हैं। कुल मिलाकर कुछ चिन्ताएं, कुछ आशंकाएं, कुछ आपत्तियां जरूर हैं लेकिन इससे इस अवसर की ऐतिहासिकता कम नहीं हो जाती। सृजन के समय ‘पीड़ा’ स्वाभाविक है और सृजन एक ही बार में ‘पूर्ण’ हो जाय, ये भी जरूरी नहीं। तमाम अवरोधों के बाबजूद जब नेपाल यहाँ तक पहुँच गया है तो आगे का सफर भी वो कर ही लेगा।
मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप