Lalu Prasad and Ram Vilas Paswan nepotism in Bihar Election 2015

लोकतंत्र के पर्व में ‘परिवार’ सबसे बड़ा ‘उम्मीदवार’..!

‘परिवारवाद’ पर ताने सुनते-सुनते बेचारी कांग्रेस के कान तो सुन्न हो चले होंगे… पर ये क्या, जो दल अस्तित्व में ही आए ‘कांग्रेसवाद’ के विरोध में, वे इस ‘दलदल’ में ज्यादा गहरे उतर चले हैं..! आज कोई दल इस ‘रोग’ से अछूता नहीं। पर मजे की बात तो ये है कि कोई इसे ‘रोग’ मानने को ही तैयार नहीं। अब तो राजनीति के गलियारे में परिवारवाद पर बातें करना वक्त बर्बाद करना है। “हमाम में सब नंगे” वाली बात अब पुरानी ही नहीं अर्थहीन भी हो चली है। अब तो कहना पड़ेगा कि हमाम में सब नंगे हैं और सारे हमाम शीशे के हैं सो अलग। ऐसे में कौन, किससे और क्या कहे..? किसी के ‘हमाम’ पर पत्थर फेंकने का नैतिक बल रहा ही नहीं किसी के पास। सारे दल और दलों के सारे नेता इस मामले में मूक समझौता कर चुके हैं, वैसे ही जैसे संसद में करते हैं, जब-जब सांसदों का वेतन-भत्ता बढ़ना हो।

बहरहाल, जरा रुख करते हैं बिहार का, जहाँ लोकतंत्र के पर्व में विरासत की वंशबेलि लहलहाकर बढ़ रही है। बात सबसे पहले लालू प्रसाद यादव की। अपने दोनों सालों से चोट खाए लालू को बेसब्री से इंतजार था अपने बेटों के 25 की उमर पार करने का। 2010 में उनकी ये मुराद पूरी ना हो पाई थी, इस बार हो रही है। उनके दोनों बेटों की उम्र चुनाव लड़ने के लायक हो गई है, सो दोनों-के-दोनों मैदान में होंगे इस बार। बड़े बेटे तेजप्रताप का महुआ से तो छोटे तेजस्वी का राघोपुर से लड़ना तय है। अब ख़बर ये आ रही है कि ओबरा से लड़ने को मीसा भारती भी कमर कस चुकी हैं। वहीं अपनी पार्टी के सांसद जयप्रकाश नारायण यादव के भाई विजय प्रकाश को लालू जमुई से राजद का उम्मीदवार बनाने जा रहे हैं।

उधर ‘मौसम वैज्ञानिक’ रामविलास ने तो सारी हदें पार कर दीं। लोकसभा में उनके छह में से तीन सांसद उन्हीं के परिवार से हैं। वे स्वयं, सुपुत्र चिराग और भाई रामचंद्र पासवान। उनके एक और भाई पशुपति कुमार पारस बिहार में पार्टी की कमान सम्भालते हैं और अलौली से चुनाव लड़ते आ रहे हैं। जाहिर है, इस बार भी वे लड़ेंगे। पर बात यहीं खत्म नहीं होती। रामविलास पासवान ने अपने भतीजे और रामचंद्र पासवान के बेटे प्रिंस राज को कल्याणपुर से उम्मीदवार बनाया है। सोनबरसा से उनकी भगीन पतोहू सरिता पासवान लड़ रही हैं और राजापाकर से दामाद मृणाल। दूसरे दामाद कुटुंबा सीट ‘हम’ के खाते में जाने के बाद सिकंदरा से लड़ने को बेताब हैं सो अलग। उनकी सूची की शोभा केवल उनके परिवार के लोग ही नहीं बढ़ा रहे। उनके बाकी उम्मीदवारों में भी ज्यादातर ‘किसी ने किसी’ के ‘कोई न कोई’ हैं। उदाहरण के तौर पर सिमरी बख्तियारपुर से सांसद महबूब अली कैसर के बेटे युसूफ खान तो विभूतिपुर से पूर्व सांसद सूरजभान सिंह के बहनोई रमेश सिंह।

अब निगाह महदलितों के नए ‘मसीहा’ जीतनराम मांझी की पार्टी ‘हम’ पर डालें। उनकी सूची में मखदुमपुर से वे स्वयं उम्मीदवार हैं तो कुटुंबा से उनके पुत्र संतोष कुमार सुमन। उनकी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष शकुनी चौधरी तारापुर से लड़ रहे हैं तो उनके छोटे बेटे राजेश कुमार उर्फ रोहित खगड़िया से। शकुनी के बड़े बेटे सम्राट चौधरी तो विधान परिषद् में हैं ही।

बीजेपी भी किसी से रत्ती भर कम नहीं। वहाँ भी ‘विरासत’ आगे बढ़ाने वालों की लम्बी फेहरिस्त है। बक्सर के सांसद अश्विनी चौबे के बेटे अजित शाश्वत को भागलपुर से, राज्यसभा सदस्य डॉ. सीपी ठाकुर के बेटे विवेक ठाकुर को ब्रह्मपुर से तो पूर्व विधान पार्षद गंगा प्रसाद चौरसिया के बेटे संजीव चौरसिया को दीघा से पार्टी ने अपना उम्मीदवार बनाया है। नंदकिशोर यादव अपने बेटे के लिए फतुहा से टिकट चाह रहे थे लेकिन ये सीट लोजपा के खाते में चली गई। झंझारपुर से जगन्नाथ मिश्र के पुत्र नीतीश मिश्र और जमुई से नरेन्द्र सिंह के बेटे अजय प्रताप सिंह इस बार बीजेपी के उम्मीदवार हैं लेकिन ‘हम’ के कोटे से। नरेन्द्र सिंह के दूसरे बेटे सुमित सिंह भी ‘हम’ की ओर से भाजपा के उम्मीदवार होंगे, बस सीट की घोषणा बाकी है।

अभी तक की सारी चर्चा तमाम पार्टियों के घोषित उम्मीदवारों को लेकर है। किसी पार्टी की पूरी सूची अभी तक आई नहीं है। कांग्रेस की तो पहली सूची भी अभी आनी है। सारी पार्टियों की सारी सूची आने के बाद ‘परिवार’ के उम्मीदवारों की कतार और लम्बी होगी, इसमें कोई संदेह नहीं।

देखा जाय तो समस्या परिवार को लेकर नहीं, समस्या उसमें ‘वाद’ के लग जाने से है। अगर आप योग्य हैं, समाज से जुड़े हैं, राजनीति में सक्रिय हैं, कुछ करने का जज्बा रखते हैं और किसी कार्यकर्ता का हक नहीं मार रहे हैं तो किसी का बेटा, बेटी, पत्नी या भाई-भतीजा होना गुनाह नहीं। लेकिन अगर ऐसा नहीं है तो ‘लोकतंत्र’ के ‘परिवारतंत्र’ में तब्दील होते देर नहीं लगेगी। फिर हमें कोई हक नहीं होगा कि इतिहास के पन्नों में दबे उस ‘राजतंत्र’ को हम बुरा-भला कहें जिसके ‘परिवार’ से निकलने की कल्पना भी तब के लोग नहीं करते थे और एक ‘परिवार’ को पराजित या अपदस्थ कर दूसरा ‘परिवार’ ही हम पर शासन करने आता था।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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