समाजसेवी-साहित्यकार डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी ने कोरोना प्रोटोकाॅल के नियमों का पालन करते हुए अपने निवास ‘वृंदावन’ में शिक्षा के महान पुजारी कीर्ति नारायण मंडल को नमन करते हुए उनकी 106वीं जयंती मनाई। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि कीर्ति नारायण मंडल ताजिंदगी कबीर की तरह जीवन जीते रहे….. बिल्कुल उसी तरह जैसे कबीर कहा करते थे- जो घर जारे आपनो…. चले हमारे साथ।
डॉ.मधेपुरी ने कहा कि कीर्ति बाबू भगवान बुद्ध की तरह घर-परिवार को त्याग कर लोक कल्याणार्थ सब कुछ न्योछावर करते रहे। उन्होंने पिताश्री के नाम पर ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय की स्थापना की जिसमें 50 बीघे जमीन और ₹25000 दान में दिए। माताश्री के नाम पार्वती विज्ञान महाविद्यालय स्थापित करने में करोड़ों रुपए की कीमती जमीन दान में दी। मिडिल स्कूल, हाई स्कूल और दर्जनों कॉलेजों के निर्माता बन गए कीर्ति बाबू। कितने गरीब छात्रों को आर्थिक सहायता देकर पढ़ाया उन्होंने। कितनों को नौकरी देकर उनके घरों में रोशनी जला दी उन्होंने।
डॉ.मधेपुरी ने उपस्थित बच्चों को कीर्ति बाबू के बारे में यह भी कहा कि कीर्ति बाबू तपस्वी थे। वे वर्षों नमक नहीं खाते तो कभी कई महीनों तक केवल दूध पीकर ही रह जाते। वे जहां भी रहते हमेशा साफ-सफाई करते रहते। वे कृष्ण की तरह जूठे पत्तल उठाने में भी संकोच नहीं करते।
अंत में डॉ.मधेपुरी ने नानक को संदर्भित करते हुए कीर्ति बाबू का एक संस्मरण बच्चों को सुनाकर बच्चों में काम करने का संस्कार भरा। उन्होंने कहा कि एक बार मैंने कीर्ति बाबू को पार्वती कॉलेज में ईंट की दीवार जोड़ते हुए देखा। फिर उन्होंने नानक के बारे में कहा कि नानक उन हाथों का पानी ग्रहण नहीं करते जिनके हाथ में काम करने का कोई ठेला कीर्ति बाबू की तरह नहीं होता। कीर्ति बाबू सचमुच महान हैं। उनकी जयंती हर घर में मनाई जानी चाहिए।