विगत कई वर्षों से लगातार एवं पिछले कई महीनों में बारम्बार जहाँ एक ओर वित्तरहित शिक्षाकर्मियों द्वारा बिहार के तमाम समाहरणालयों के गेटों पर आठ सूत्री मांगों को लेकर कभी मशाल जुलूस तो कभी पुतला दहन, कभी धरना प्रदर्शन तो कभी आमरण अनशन होता रहा, वहीँ दूसरी ओर सम्पूर्ण सूबे में सेविकाओं-सहायिकाओं द्वारा नारी शक्ति का अदभुत प्रदर्शन यह सिद्ध कर दिया है कि नारी अब अबला नहीं रही. . . . ! बावजूद ऐसे जोरदार उग्र प्रदर्शनों के सरकार में स्थापित जनप्रतिनिधिगण इस कदर संवेदन शून्य नजर क्यों आते हैं ?
जब इस बाबत मधेपुरा अबतक के प्रतिनिधि संवाददाता ने समाजसेवी साहित्कार डॉ.मधेपुरी से प्रतिक्रिया जानना चाहा तो उन्होंने कुछ ऐसा ही कहा –
जब भारत के संविधान में ही समानता के अधिकार को मौलिक अधिकारों में सुमार किया गया है तो फिर एक समान काम करनेवालों को एक समान वेतन व समान सुविधाएँ मुहैया कराने में सरकार जजवाती क्यों नहीं दीखती | सरकार संवेदनशून्य नजर क्यों आती है ? जिन जनों के वोट से जनप्रतिनिधि चुनकर सरकार में आते हैं, वे आते ही अपने लिए 2.00 रु. प्लेट चावल और 1.50 रु. प्लेट दाल . . . एक रुपए पीस रसगुल्ला और एक रुपए प्रति कप चाय वाले वातानुकूलित कैंटीन की व्यवस्था कर लेते हैं और उन जनों को पेट भर भोजन के लिए उग्र प्रदर्शन करने एवं पसीना बहाने के लिए छोड़ देते हैं |
एक अंगीभूत कॉलेज के शिक्षक को लाख रुपये के लगभग वेतन व वेतन वृद्धि के साथ-साथ महंगाई भत्ता –पेंशन आदि और बगल वाले वित्तरहित कॉलेज के शिक्षकों को समान काम के लिए परीक्षाफल यानी उत्तीर्ण छात्रों की संख्या के आधार पर अनुदान राशि देने की नीति – समता के सिद्धांत एवं न्याय के प्रतिकूल ही तो है |
यह भी जानें कि इस नीति के आधार पर विभिन्न वित्तरहित महाविद्यालयों को दी जाने वाली अनुदान की राशि भी तो भिन्न-भिन्न हो जाती है | बावजूद इसके वह राशि प्रबंधन के बन्दरबांट का शिकार भी बन जाती है | तुर्रा तो यह है कि उन्हीं कॉलेजों के छात्रों को विभिन्न योजनाओं के तहत दी जाने वाली राशि को सरकार सीधे उनके बैंक खातों में जमा करवाती है, लेकिन इन्हीं छात्रों को ज्ञानवान बनाने वाले शिक्षकों के लिए सरकार ऐसा कुछ क्यों नहीं सोचती | सरकार इतना भी तो सोचे कि स्किल्ड लेबर के लिए निर्धारित पारिश्रमिक राशि भी तो उन शिक्षकों के बैंक खाते में प्रतिमाह अवश्य पहुंचे |
सरकार के सभी विभागों में नियोजन की बाढ़ आई हुई है | संविदा पर बहाल कर्मियों की मृत्यु हो जाने पर उनके परिजनों को एक मुस्त चार लाख रुपये दिए जायेंगे लेकिन अधिक दिनों तक जिंदा रहने के लिए उन्हें पेंशन नहीं दिए जायेंगे, जबकि जनप्रतिनिधि यदि चंद महीने के लिए चुनकर सरकार में प्रवेश पा लेते हैं तो जीवन पर्यन्त वे पेंशन के हक़दार तो हो ही जाते हैं – साथ ही मुफ्त दवा से लेकर मुफ्त रेलयात्रा आदि के भी हकदार हो जाते हैं |
डॉ.मधेपुरी भू.ना.मंडल वि.वि. में भौतिकी के प्राध्यापक, विकास पदाधिकारी, परीक्षा नियंत्रक के अतिरिक्त विभिन्न पदों पर रह चुके हैं | संविधान निर्माताओं द्वारा निर्मित समता के अधिकार की ऐसी व्याख्या डॉ.मधेपुरी सदृश सुलझे सोच का कोई जिन्दादिल नेक इंसान ही करेगा | संभव है इस चुनावी वर्ष में यह खबर सरकार पर असर डाले और सरकार के हाथों वित्तरहित शिक्षकों का कल्याण हो जाये |