महापंडित राहुल सांकृत्यायन की 128वीं जयंती मनी मधेपुरा में

प्रतिष्ठित बहुभाषाविद् एवं महापंडित राहुल सांकृत्यायन की 128वीं जयंती कोरोना के कारण ऑनलाइन मनाया कौशकी क्षेत्र हिन्दी साहित्य सम्मेलन संस्थान के सचिव डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी ने। अपने वृंदावन निवास पर बच्चों को संबोधित करते हुए डॉ.मधेपुरी ने कहा कि यात्रा साहित्य के पितामह कहे जाने वाले राहुल सांकृत्यायन का जन्म 1893 ईस्वी के 9 अप्रैल को यूपी के आजमगढ़ में हुआ था और 14 अप्रैल 1963 को दार्जिलिंग में उन्होंने अंतिम सांस ली थी।

इस अवसर पर सम्मेलन के अध्यक्ष व वरिष्ठ साहित्यकार हरिशंकर श्रीवास्तव शलभ ने अपने ऑनलाइन संबोधन में यही कहा कि राहुल सांकृत्यायन का बचपन का नाम केदारनाथ पांडेय था, जिन्होंने अपने जीवन का 45 वसंत और पतझर देश-दुनिया की यात्राओं में बिताया। वे भारतीय मनीषा के अग्रणी विचारक, साम्यवादी चिंतक, सामाजिक क्रांति के अग्रदूत, सार्वजनिक दृष्टि एवं घुमक्कड़ प्रवृत्ति के महान पुरुष थे।

सम्मेलन के संरक्षक व पूर्व सांसद डॉ.आरके यादव रवि ने शुभाशीष देते हुए बच्चों से इतना ही कहा कि उनकी प्रसिद्ध पुस्तक “मेरी लद्दाख यात्रा” में सभी धार्मिक, ऐतिहासिक व पारंपरिक जगह और रिवाजों का विस्तृत विश्लेषण है। उन्होंने हिन्दी, संस्कृत, पाली, भोजपुरी, उर्दू, फारसी, अरबी, तमिल, कन्नड़, तिब्बती, फ्रेंच एवं रूसी भाषाओं में भी पुस्तकें लिखी हैं।

अंत में डॉ.अरविंद श्रीवास्तव ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए यही कहा कि बाद में वे बौद्ध भिक्षु भी बन गए थे। मृत्यु के कुछ दिन पूर्व उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।

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