विश्वविख्यात शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खाँ की आज 106वीं जयंती है। सारा भारत अपने भारतरत्न को आज के दिन याद करता है। उनकी शहनाई की धुन का दीवाना विश्व के हर देश के लोग हैं।
उस्तादों के उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ का जन्म डुमरांव (बिहार) के एक संगीतज्ञ मुस्लिम घराने में हुआ था। तभी तो अपने चाचा उस्ताद अली बख्श से उन्होंने संगीत की शिक्षा पाई, जो काशी विश्वनाथ मंदिर के शहनाई वादक थे।
आगे 15 अगस्त 1947 को देश के प्रथम स्वाधीनता समारोह में और फिर 26 जनवरी 1950 को प्रथम गणतंत्र दिवस पर दिल्ली का ऐतिहासिक लाल किला बिस्मिल्लाह खाँ के सुमधुर शहनाई वादन का साक्षी बना। उन्होंने दुनिया को शहनाई की मिठास का एहसास कराया।
शिक्षाविद-समाजसेवी डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी ने भारतरत्न बिस्मिल्लाह खाँ को याद करते हुए यही कहा कि वे जब भी विदेशों में कार्यक्रम करते और भारत आते तो अखबार नबीसो द्वारा यह पूछा जाता कि आप की शहनाई की गूंज सुनकर जब दर्शक तालियां बजाते तो आप कैसा महसूस करते- के जवाब में वे कहा करते- “मैं तो वहां शहनाई बजाता नहीं हूं, वहां तो भारत शहनाई बजाता है….।”