सूरज नहीं बोलता, मैं रोशनी देता हूँ… नदियां नहीं बतातीं, मैं प्यास बुझाती हूँ… फूल नहीं बोलते, मेरा रंग देखो। जो है, उसे बोलना क्या..! लेकिन ये युग ‘विज्ञापन’ का है। हालात कुछ ऐसे होते जा रहे हैं कि कल को शायद इन्हें भी अपना ‘होना’ बताना पड़े..! नहीं तो कल को रोशनी, पानी और रंग पर भी कोई मल्टीनेशनल कम्पनी ‘कॉपीराइट’ का दावा ठोक दे और सूरज, नदियां और फूल नकली ठहरा दिये जायं तो कोई अचरज नहीं। जो खुद को पूरा दम लगाकर असली और सामने वाले को सारी हदें तोड़कर नकली बता दे वही आज के ‘बाजार’ में टिक सकता है।
जब बात असली-नकली की निकली है तो वो राजनीति तलक तो जाएगी ही। असली-नकली के द्वंद्व-युद्ध का राजनीति से बड़ा ‘अखाड़ा’ है भी तो नहीं। चलिए ले चलें आपको बिहार जहाँ असली-नकली की बड़ी दिलचस्प लड़ाई छिड़ी है, वो भी एक नहीं दो-दो। पहली लड़ाई है पैकेज को लेकर। “उसका पैकेज, मेरे पैकेज से बड़ा कैसे” के बाद अब लड़ाई छिड़ गई है “मेरा पैकेज असली, तेरा पैकेज नकली” का। दरअसल बिहार के विकास के नाम पर लड़ी जा रही ये लड़ाई मोदी और नीतीश की लड़ाई है और सवालों के घेरे में दोनों ही हैं। पहला सवाल मोदी से कि उन्होंने एक करोड़ पैंसठ लाख के पैकेज की घोषणा के लिए ऐन चुनाव का ही मौका क्यों चुना जबकि बिहार के लिए ‘विशेष’ की मांग बहुत दिनों से की जा रही थी..? दूसरा सवाल नीतीश से कि जब मोदी ने पैकेज की घोषणा कर दी तभी उन्हें विकसित बिहार के लिए दो लाख सत्तर हजार करोड़ का ‘विज़न’ कैसे मिला..? तीसरा सवाल फिर मोदी से कि जब उन्होंने 18 अगस्त को एक बड़े पैकेज की घोषणा कर ही दी थी तो महज दो सप्ताह बाद यानि 1 सितम्बर को तीन लाख चौहत्तर हजार करोड़ और देने की जरूरत क्यों पड़ गई..? चौथा सवाल दोनों से कि इतने पैसे आएंगे कहाँ से और अगर आने का ‘मार्ग’ था तो पहले ‘रुकावट’ क्या थी..? बहरहाल, वादे के मामले में दोनों में से कोई पूरे अंक पाने की स्थिति में नहीं हैं। लोकसभा चुनाव के पहले मोदी ने विदेशों में जमा काला धन लाने और हर हिन्दुस्तानी के खाते में 15 लाख आने की बात कही थी लेकिन हुआ क्या..? दूसरी ओर नीतीश ने कहा था कि अगर घर-घर बिजली नहीं पहुँची तो वोट मांगने नहीं जाएंगे लेकिन वे धड़ल्ले से ‘हर घर दस्तक’ दे रहे हैं। ऐसे में किसका पैकेज असली है और किसका नकली, ये कौन तय करे और कैसे तय करे..!
असली-नकली की दूसरी लड़ाई है “मेरा गठबंधन असली, तेरा गठबंधन नकली” को लेकर। ‘महागठबंधन’ से पहले एनसीपी दूर हुई और आज सपा ने अलग चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी। लालू अपने ‘समधी’ को समझाने में सफल ना हो सके। एनडीए को मुँह चिढाने का मौका मिल गया। लेकिन खुद शीशे के घर में रहनेवाले दूसरे पर पत्थऱ उछालें भी तो कैसे। पासवान, कुशवाहा और मांझी घोषित तौर पर तो पप्पू अघोषित तौर पर सीटों के लिए ताल ठोक रहे हैं। ये सब जितनी सीटें मांग रहे हैं उनको मिला दें तो खुद भाजपा को घर बैठना पड़ जाएगा। उधर लालू-नीतीश और कांग्रेस ने आपस में सीटों की संख्या तय तो कर लीं लेकिन कौन किस सीट पर लड़े इस पर पेंच फंसा का फंसा है। समय और स्वार्थ की आग में कौन गठबंधन ‘सोना’ बनकर निकलेगा और वो सोना कितना खरा होगा ये तो आनेवाला वक्त ही बताएगा।
सच तो ये है कि आज असली और नकली की बात ही बेमानी है। जिसके हाथ में ‘लाठी’ उसकी ‘भैंस’ असली और दूसरे की क्या, आप अच्छी तरह जानते हैं।
मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप