Parivartan Rally in Bihar

कहीं फेल ना हो जाय बिहार का ‘केलकुलेटर’

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बिहार में एक बार फिर एक बड़ी रैली की। 1 सितम्बर को भागलपुर में हुई ये रैली मुजफ्फरपुर, गया और सहरसा के बाद उनकी चौथी और शायद सबसे बड़ी ‘परिवर्तन’ रैली थी। जैसा कि अपेक्षित था उन्होंने तकरीबन उन सभी सवालों के जवाब दिए जो 30 अगस्त की ‘स्वाभिमान’ रैली में ‘महागठबंधन’ के नेताओं ने उन पर उठाए या ‘उछाले’ थे।

अब राजनीतिक मंचों से… चाहे वो किसी भी पार्टी के क्यों ना हों… बिहार में हों या बिहार से बाहर… कमोबेश एक तरह के ‘बयान’ सामने आते हैं। ‘संदर्भ’ और ‘सवाल’ बदल जाते हैं, ‘साधन’ और ‘साध्य’ हमेशा वही रहते हैं। यही कारण है कि इन मंचों का माहौल और बयानों की ‘तल्ख़ी’ भी कमोबेश एक जैसी रहती है। लेकिन बिहार में राजनीतिक दलों की लड़ाई ने नया रूप ले लिया है। अब हमले केवल बयानों से नहीं ‘पैकेज’ से भी किये जा रहे हैं। अभी मोदीजी के दिए एक लाख पैंसठ हजार करोड़ के ‘उपहार’ की खुशी बिहार मना ही रहा था कि नीतीशजी ने दो लाख सत्तर हजार करोड़ ‘न्योछावर’ कर दिए। जो बिहार ने सोचा ना था वो मिल गया उसे। बेचारा अभी दोनों पैकेज का ‘जोड़’ ही निकाल रहा था कि मोदीजी ने भागलपुर में तीन लाख चौहत्तर हजार करोड़ और ‘कूट’ दिए। अब तो डर है कि कहीं फेल ना हो जाय बिहार का ‘केलकुलेटर’।

बहरहाल, प्रधानमंत्री मोदी ने भागलपुर में फाइनेंस कमीशन की रिपोर्ट का हवाला देते हुए घोषणा की कि अगले पाँच वर्षों में बिहार को दिल्ली से तीन लाख चौहत्तर हजार करोड़ और मिलेंगे। उन्होंने ये भी स्पष्ट किया कि ये पैकेज पहले घोषित एक लाख पैंसठ हजार करोड़ के अतिरिक्त है।

मोदी ने नीतीश के पैकेज पर पैकेज से ‘हमला’ ही नहीं किया, बाकी मुद्दों पर भी जमकर बोले। स्वाभिमान रैली में नीतीश और लालू के सोनिया संग एक मंच पर आने को उन्होंने जेपी, लोहिया और कर्पूरी ठाकुर को ‘तिलांजलि’ देना बताया। विकास के मुद्दे पर उन्होंने इनके शासन के 25 सालों पर सवाल उठाए तथा जाति और सम्प्रदाय की राजनीति करने का आरोप लगाया। डीएनए वाले मुद्दे पर सफाई देने से वे नहीं चूके और बिहार के लोगों को ‘धरती पर सबसे बुद्धिमान’ बताया।

मोदी की भागलपुर रैली में भाजपा की उम्मीद से ज्यादा लोग जुटे। ये अब तक की सबसे बड़ी ‘परिवर्तन’ रैली कही जा रही है। स्वयं मोदी ने भी मंच से ये स्वीकार किया। मोदी के साथ बिहार भाजपा के तमाम दिग्गज और सहयोगी दलों के सभी नेता मौजूद थे। एक बात का उल्लेख विशेष तौर पर करना होगा कि प्रधानमंत्री मोदी के बाद सबसे अधिक जिन्दाबाद के नारे जीतनराम मांझी के भाषण के दौरान लगे। दलित व महादलित समुदाय के ‘वोट बैंक’ के मद्देनजर एनडीए के लिए ये अच्छी खबर है लेकिन इससे बिहार भाजपा की ‘कमजोरी’ एक बार फिर उजागर हुई कि यहाँ उसका कोई ‘प्रतिनिधि’ चेहरा नहीं है।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

सम्बंधित खबरें