तारीख 13 दिसंबर 2001 और समय दिन के 11:28 हो रहे थे। स्थल था भारत का संसद भवन परिसर। पार्लियामेंट सेशन में था। पक्ष-विपक्ष के बीच हंगामे को लेकर दोनों सदनों की कार्यवाही 40 मिनट के लिए स्थगित की जा चुकी थी। इसी दरमियान कायराना हमले के तहत पाकिस्तानी पांच आतंकियों द्वारा संसद भवन के मुख्य द्वार पर गोलियों की तड़तड़ाहट ने सिर्फ संसद के अंदर फंसे सांसदों को ही नहीं बल्कि पूरे देश को ही झकझोर कर रख दिया था। लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर पर आतंकियों ने अचानक आत्मघाती हमला कर दिया था।
19 साल पहले 45 मिनट तक चले इस हमले में आठ सुरक्षाकर्मियों एवं एक माली की जान चली गई थी। परंतु, भारत माता के इन वीर जवानों ने अपनी जान को मुट्ठी में लेकर पहले सदन के सभी दरवाजों को बंद कर देश के रहनुमाओं की जान बचाई और फिर सभी अंतिम सांस तक लड़ते हुए एक-एक कर सभी पांच आतंकियों को मार गिराया था।
बता दें कि जिन शहीद सुरक्षाकर्मियों ने हमारी संसद की रक्षा करते हुए अपनी जान गवांई उनके बलिदान एवं बहादुरी को याद करते हुए देश के महामहिम राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृह मंत्री एवं रक्षा मंत्री….. आदि कहते हैं कि यह देश उन वीर सपूतों का हमेशा कर्जदार रहेगा तथा हम हमेशा उनके आभारी रहेंगे।
चलते-चलते यह भी जानिए कि मधेपुरा के संवेदनशील साहित्यकार प्रो.(डॉ.)भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी द्वारा भारत के महामहिम राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री से यह अनुरोध किया जा रहा है कि जिस तरह से बिहार की राजधानी पटना में विधानसभा भवन के सामने 7 शहीदों की स्मृति में सप्तमूर्ति बनाई गई है, वैसी ही मूर्तियां संसद भवन के सामने इन शहीदों की भी बनाई जाए ताकि समस्त देश उनके बलिदान एवं बहादुरी से सदैव प्रेरित होता रहे। बच्चे और बड़े सभी उन मूर्तियों के साथ फोटो लेकर गौरवान्वित होता रहे।