संसार में कलम की ताकत सदैव तलवार से अधिक रही है और दुनिया में ऐसे कई पत्रकार हुए हैं जिन्होंने अपनी कलम की ताकत से सत्ता तक की राह बदल दी- ऐसे ही पत्रकारों में एक थे- निर्भीक जुझारू पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी। ये बातें कौशिकी क्षेत्र हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सचिव प्रो.(डॉ.)भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी ने उनकी 131वीं जयंती ऑनलाइन मनाये जाने के क्रम में 26 अक्टूबर को कही। डॉ.मधेपुरी ने कहा कि आर्थिक कठिनाइयों के कारण वे इंट्रेंस तक ही पढ़ सके, परंतु अच्छी जानकारी हासिल करने के कारण 16 वर्ष की उम्र में विद्यार्थी जी ने महात्मा गांधी से प्रेरित होकर पहली पुस्तक “हमारी आत्मोत्सर्गता” लिखी थी।
सम्मेलन के संरक्षक साहित्यकार व पूर्व सांसद डाॅ.रमेन्द्र कुमार यादव रवि ने कहा कि मात्र 23 वर्ष की उम्र में गणेश शंकर विद्यार्थी ने ‘प्रताप’ अखबार की शुरुआत की और स्वतंत्रता संग्राम के दरमियान विद्यार्थी जी के जेल जाने के बाद ‘प्रताप’ का संपादन माखनलाल चतुर्वेदी एवं बालकृष्ण शर्मा नवीन जैसे बड़े-बड़े साहित्यकार करने लगे। विद्यार्थी जी सात वर्षों में पाँच बार जेल गए। डॉ.रवि ने कहा कि रायबरेली के सरदार वीरपाल सिंह ने किसानों पर गोली चलवाई और उसका पूरा ब्योरा प्रताप में छापने के कारण विद्यार्थी जी सहित अन्य पर मानहानि का मुकदमा भी हो गया जिसमें गवाह के रूप में मोतीलाल नेहरू एवं जवाहरलाल नेहरू भी पेश हुए थे।
अंत में अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन के अध्यक्ष हरिशंकर श्रीवास्तव शलभ ने अपने ऑनलाइन संबोधन में यही कहा कि विद्यार्थी जी के लिए जेल जैसे उनका घर ही हो। अंग्रेजों के कोपभाजन होने के कारण उन्होंने सरकारी नौकरी भी छोड़ दी। जेल में लिखी डायरी के आधार पर “जेल जीवन की झलक” नाम से सीरीज छपी जो सर्वाधिक हिट रही। इस कार्यक्रम से अनेकों साहित्यकार जुड़े रहे। प्रो.मणिभूषण वर्मा ने 1931 के कानपुर दंगे को रोकने के क्रम में शहीद हुए विद्यार्थी जी को नमन किया और कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा की।