भारत में मार्च और अगस्त महीना को क्रांति के महीने के रूप में शुमार किया जाता है। खासकर 23 मार्च को विशेष रूप से याद किया जाता है, क्योंकि इसी दिन 1931 को शहीद-ए-आजम भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को एक साथ फांसी दी गई थी। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में सबसे अधिक चर्चित घटना के रूप में इसे याद किया जाता है।
बता दें कि ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत के लायलपुर जिले के बंगा गांव में 28 सितंबर 1907 को भगत सिंह का जन्म हुआ था। भगत सिंह के पिता सरदार किशन सिंह एवं चाचा अजीत सिंह व स्वर्ण सिंह सभी अंग्रेज के कट्टर विरोधी थे, जिसके चलते उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा था।
बकौल साहित्यकार डॉ म.भूपेन्द्र नारायण मधेपुरी यह जानिए कि जलियांवाला कांड में जनरल डायर की क्रूरता की जानकारी पाते ही किशोरवय के भगत सिंह लाहौर से अमृतसर पहुंच गए और निर्दोष भारतीयों के रक्त से भींगी मिट्टी को एक बोतल में ले देशवासियों के अपमान का बदला लेने को मचलने लगे। जनरल डायर की क्रूरता का बदला लेने के लिए भगत सिंह ने “हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी” नामक क्रांतिकारी दल का गठन किया, जिससे चंद्रशेखर आजाद सरीखे अन्य बहुत से क्रांतिकारी जुड़ते चले गए।
अंत में यह भी कहा डॉ.मधेपुरी ने कहा कि 17 नवंबर, 1928 को साइमन कमीशन के विरोध करने के दरमियान हुई लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने के लिए भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव आदि ने लाहौर से सांडर्स की हत्या कर दी। जेल में रहते ही इन लोगों पर मुकदमा चला। 23 मार्च 1931 को इन तीनों को अपराधी कह कर फांसी पर लटका दिया गया। रात के अंधेरे में ही सतलज नदी के किनारे इनका अंतिम संस्कार भी कर दिया गया, परंतु ऐसे-ऐसे क्रांतिकारियों के बलिदान को सम्मान देने में देश समुचित उत्साह नहीं दिखा पा रहा है।