कोरोना के कोहराम के दरमियान ‘घर में रहें, सुरक्षित रहें’ के संदेश को जीवन का संबल बनाते हुए डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी सरीखे समाजसेवी-साहित्यकार द्वारा निज निवास ‘वृंदावन’ में पेरियार ई वी रामासामी की 142वीं जयंती मनाई गई।
डॉ.मधेपुरी ने आॅनलाइन श्रोताओं को अपने संबोधन में यही कहा कि पेरियार को हिंदू धर्म का ‘वाल्टेयर’ तथा एशिया महाद्वीप का ‘सुकरात’ कहा जाता है। उन्होंने कहा कि पेरियार ई वी रामासामी का जन्म 17 सितंबर, 1879 ईसवी को हुआ था एवं उनकी मृत्यु 24 दिसंबर, 1973 को हुई थी। बहुजनों का वह अप्रतिम योद्धा, त्यागी एवं संघर्षशील मसीहा ताजिंदगी ब्राह्मणवादी व्यवस्था के विरुद्ध विद्रोही चेतना के प्रखर नायक बने रहे।
पेरियार रामासामी का मानना था कि ईश्वरवाद से ही पुरोहितवाद का जन्म होता है और पुरोहित ईश्वर की आड़ में समाज का शोषण करता है। पेरियार की मान्यता थी कि जाति व्यवस्था जहां ब्राह्मणों की सबसे बड़ी ताकत है वहीं शूद्रों की सबसे बड़ी कमजोरी। पेरियार की इसी सोच ने मरते दम तक ब्राह्मणों की मान्यताओं एवं परंपराओं से समाज को दूर रहने की सलाहियत दी।
अंत में डॉ.मधेपुरी ने सुनाया पेरियार का यह संदेश- “सभी मनुष्य समान रूप से पैदा होते हैं तो फिर अकेले ब्राह्मण ऊँच और अन्यों को नीच कैसे ठहराया जा सकता है। धार्मिक ग्रंथों को यह कहकर नकार दिया कि ये सारे काल्पनिक ग्रंथ हैं जो एक वर्ग को श्रेष्ठ एवं शेष समाज को नीच साबित करने के लिए लिखे गए हैं।”